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________________ नयरङ्ग २५७ वैद्य ग्रन्थ सब मथि के रचिउं सुभाषा आनि, अरथ दिखावं प्रगट करि औषद रोग निदान । वैद्यमनोत्सव नाम धरि देखी ग्रंथ सुप्रकाश, केसराज सुत नयनसुख श्रावक कुलहि निवास । केसराज सुत नयनसुख कीयउ ग्रंथ अमृत कन्द, सुभनगरसीहनन्द मइ, अकबर साह नरिन्द । अर्थात् यह ग्रन्थ सं० १६४९ चैत्र शुक्ल द्वितीया, मंगलवार को सीहनन्द नामक स्थान में अकबर सम्राट के शासनकाल में लिखा गया था। यद्यपि इस ग्रन्थ का साहित्य से सम्बन्ध नहीं है फिर भी छन्दबद्ध रचना होने से पद्य भाषा-शैली का नमूना प्रस्तुत करने के लिए इसका संक्षिप्त उल्लेख कर दिया गया है। नयरङ्ग-जिनभद्रसूरि की शाखा के आचार्य गुणशेखर (खरतर०) आपके गुरु थे। आप प्राकृत, संस्कृत और मरुगुर्जर भाषाओं के ज्ञाता थे और इन भाषाओं में आपने रचनायें की हैं। प्राकृत भाषा में विधि कन्दली की रचना की और सं० १६२५ में स्वयं उसकी संस्कृत में वृत्ति बीरमपुर में लिखी। आपने सं० १६२४ में संस्कृत भाषा की रचना 'परमहंस संबोधचरित्र' वीरमयुर में रची। मरुगुर्जर में आपकी निम्न रचनायें प्राप्त हैं__ मुनिपति चौपइ सं० १६१५, सतरभेदी पूजा सं० १६१८, अर्जुनमाली संधि सं० १६२१, कुवेरदत्ता चौपइ सं० १६२१, केशी-प्रदेशी सन्धि, गौतमपृच्छा, गौतमस्वामी छन्द, जिनप्रतिमा छत्तीसी और 'चौबीसी आदि। आपकी गुरु परम्परा श्री देसाई ने इस प्रकार बताई है। खरतरगच्छीय जिनभद्रसूरि शाखा के समयध्वज के शिष्य ज्ञानमन्दिर के शिष्य गुणशेखर के शिष्य नयरंग थे। गौतमपृच्छा और गौतमस्वामी छंद का विवरण-उद्धरण दिया जा रहा है। १. श्री अगर चन्द नाहटा-परम्परा पृ० ७४ और राजस्थान का जैन साहित्य पृ० १७५ १७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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