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________________ २५६ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास' धन कन पूरन तुंग अवास, वसहिं निसंक धर्म के दास, छत्राधीश हमा, वंश, अकबर नन्द वैरि विध्वंस ।' गूढ़ विनोद नामक तृतीय उपलब्ध कृति अध्यात्म सम्बन्धी रचना है जो गीतों और गेय पदों में आवद्ध है। यह मुक्तक रचना है। नन्द कवि के गुरु भट्टारक त्रिभुवन कीति शास्त्र एवं साहित्य के पारंगत विद्वान् थे। अतः कवि ने भी अपनी गुरु परंपरा के अनुरूप साहित्य एवं शास्त्र में निपुणता प्राप्त की थी। ___नन्नसूरि-कोरंटगच्छीय कक्कसूरि आपके गुरु थे। एक नन्नसूरि १६वीं शताब्दी में भी हो गये हैं जो सर्वदेवसूरि के शिष्य थे। उन्होंने विचारचौसठी आदि रचनायें की थी। प्रस्तुत नन्नसूरि की मात्र एक ही रचना क्षेत्रविचारतरंगिणी (१२४ कड़ी) उपलब्ध है । यह सं० १६१७ में लिखी गई, जैसा कवि की इन पंक्तियों से प्रकट होता है संवत सोल सइ सतरोतरइ, नन्नसूरि कवियण उच्चरइ, अह विचार सयल जाणिवउ, सांचउ हुइते मनि आणिवउ । इसमें कवि ने अपनी गुरु परम्परा इस प्रकार बताई है श्री कोरंटगछ दीपंतु, हेला मोह भयण जंपतु, श्री कक्कसूरि गुरुपथ अणुसरी, एकचित्ति मई सेवाकरी । नयनसुख-आप श्रावक केसराज के पुत्र थे। आपने सं० १६४९ में वैद्यक का ग्रन्थ वैद्य महोत्सव बनाया । इसकी भाषा सरल हिन्दी है। रचनाकाल- अक वेद रस मेदनी शुक्लपक्ष चैत्रमास, तिथि द्वितीया भृगुवार फुनि पुण्यचन्द्र सुप्रगास । ३ आदि-सिवसुत प्रणमूं हूँ सदा रिद्धि सिद्धि निति देइ, कुमति विनासन सुमतिकार मंगल मुदित करेइ । १. हस्तलिखित ग्रन्यों का बीसवां त्रैवार्षिक विवरण, पृ० ४३०-३१ २. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ. ९२ (द्वितीय संस्करण), भाग ३ पृ. ६८९-९० (प्रथम संस्करण) ३. वही, भाग २ पृ० २६३-६४ (द्वितीय संस्करण) और भाग ३ पृ० ७९२ ७९३ (प्रथम संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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