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________________ २५२ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का वृह द इतिहास मंगल करो, यह स्पष्ट सूचित करता है कि इन रचनाओं के कर्ता कवि नगर्षिगणि हैं और वे कुशलवर्द्धन के शिष्य हैं । इसीलिए नवीनसंस्करण में इन रचनाओं को एकत्र नगर्षिगणि के नाम से ही दर्शाया गया है। श्री देसाई ने जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० २९० पर केवल रामसीतारास का संक्षिप्त विवरण नगर्षि के नाम पर दिया था। उसमें भी कवि ने लिखा है, 'कवि कुशलवर्द्धन सीस पभणइ, नगागणि वंछीय करो' अर्थात् लेखक प्रायः इसी प्रकार अपना परिचय सर्वत्र देता है और ये सभी रचनायें उन्हीं की हैं। सिद्धपुर जिन चैत्य परिपाटी स्तवन (सं० १६४१ भाद्र शुक्ल ६, सिद्धपुर) के अन्त में रचनाकाल इस प्रकार दिया गया है चंद्र नइ रस जाणीइ, तु भमरुली वेद वेलससि जोइ, ते संवच्छर नाम कहुं तु भमरुली भादव सुदि छठि होइ । इसका अन्तिम कलश इस प्रकार है-- सीधपुर नयर मझारि किधि चइत परिपाटी भली, जे भणइ भवियण कहई कवियण, तास घरि संपद मिली। तवगछमंडन दुरियखण्डन श्री हीरविजय सूरीसरु, कवि कुशलवर्द्धन सीस पभणइ सकलसंघ मंगलकरु ।' रामसीतारास आपकी प्रसिद्ध रचना है। इसमें सीताराम का जैनमतसंमत चरित्र चित्रित किया गया है। इसका रचनाकाल इस प्रकार कवि ने लिखा है चन्द्र अब्रइ रस वेद निहाल, नन्द भलु तिमालु (सं० १६४९) अल्पबुद्धि विचारगर्भित श्रीमहावीरस्तवन ( ३९ कड़ी) की रचना हीर विजयसूरि के समय हुई। आपने स० १६५३ फाल्गुन वदी १३ भृगुवार को संग्रहणी टब्बार्थ (गद्य) लिखा। इसका लेखन विजयसेन सूरि के समय हुआ। चतुर्विंशतिजिनसकलभव वर्णन स्तवन (७१ कड़ी) की रचना सं० १६५७ श्रावण शुक्ल १० गुरु को पूर्ण हुई। इस रचना का प्रारम्भ देखिये-- १. जैन गुर्जर कविओ भाप २ पृ० १८८ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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