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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास स्थिति में कुछ सुधार हुआ। धर्म और जीविका के मामलों में राज्य का अनावश्यक हस्तक्षेप कम हो गया। इससे कुछ शान्ति और सुव्यवस्था अवश्य आई जिससे जीवन और साहित्य तथा कलाओं को नवीन स्फूर्ति मिली। भारतीय हिन्दू प्रायः निरामिष भोजन करते थे किन्तु मुसलमानों में मांसभक्षण और मादक द्रव्यों का सेवन होता था। पुर्तगालियों के प्रभाव से तम्बाकू का सेवन भी बढ़ रहा था। उच्चवर्ग के लोग रेशमी और जरी के कपड़े पहनते थे। मध्यम वर्ग के पास सादे उत्तरीय और एकाध कपड़े अधोवस्त्र के रूप में होते थे किन्तु निम्नवर्ग के लोग प्रायः कौपीन पर ही जीवन काट देते थे । समाज की इस स्थिति का साहित्य और कलाओं पर काफी प्रभाव देखा जा सकता है।
स्त्रियों की अवस्था सोचनीय थी। मुसलमानों के काल में बालविवाह एवं पर्दे का प्रचलन बहुत बढ़ गया था। बदायूनी ने लिखा है कि अकबर जैसा उदार शासक भी चूंघट और पर्दे का कट्टर समर्थक था । उसने बालविवाह रोकने का अवश्य प्रयत्न किया था। इस काल की विशिष्ट महिलायें जैसे गुलबदन बेगम, माहम अंगा, सलीम सुल्ताना, रानी दुर्गावती और चाँदबीबी आदि शिक्षा, शासन और समाज के क्षेत्र में अपने कार्यों से प्रसिद्ध अवश्य हुईं पर सामान्य स्त्रियों की स्थिति निम्नवर्ग के पुरुषों से कुछ विशेष अच्छी नहीं थी।
शिक्षा-अकबर ने साधारण प्रजा की शिक्षा पर ध्यान दिया। उसने अनुमान किया कि इस्लामी शिक्षण संस्थाओं में पढ़ाये जाने वाले विषय भारत जैसे हिन्दू-बहुल देश के नागरिकों की आवश्यकता पूर्ति के लिए अपर्याप्त है। इसलिए उसने शिक्षा पद्धति एवं पाठ्यक्रम में सुधार का निश्चय किया। उसने प्रत्येक छात्र के लिए नैतिक शिक्षा, गणित, कृषि, ज्यामिति, शरीरविज्ञान, इतिहास, औषधिशास्त्र, भाषा और धर्मशास्त्र की शिक्षा आवश्यक कर दी। मदरसों में उक्त विषयों के साथ हिन्दी, हिन्दू-दर्शन तथा भारतीय इतिहास के अध्यापन की विशेष हिदायत दी गई। शाहजादा दानियाल हिन्दी का अच्छा विद्यार्थी था। अकबर ने चिकित्सा, खगोल, संगीत, न्याय और धर्मशास्त्र की उत्तम पुस्तकों का अनुवाद योग्य विद्वानों से कराकर उक्त विषयों की पाठ्यपुस्तकों का अभाव दूर कर दिया। उसने पुस्तकालयों की स्थापना कराई। उसके राजकीय पुस्तकालय
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