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उपोद्घात
समुन्नत थे । पैदावार का एक तिहाई कर के रूप में लिया जाता था । किसानों से मालगुजारी सीधे वसूल की जाती थी। सूरत और खंभात के बंदरगाहों से विदेशी व्यापार किया जाता था, जहाँ से सूती वस्त्र, मिर्च-मसाले, नील और अफीम आदि का निर्यात किया जाता था, तथा सोना, रेशम आदि का आयात होता था । लगभग १०० सरकारी कारखाने भी चलते थे जिनसे राज्य को काफी आय होती थी ।
आर्थिक-सामाजिक स्थिति सामान्य प्रजा की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, क्योंकि सम्पदा के वितरण की व्यवस्था में बड़ी विषमतायें थीं । सम्पूर्ण व्यापार कुछ लोगों के हाथ में ही सीमित था । जमीन पर बड़े-बड़े सामन्तों- सूबेदारों का आधिपत्य था । उन्हें बड़ी-बड़ी जागीरें मिली थीं । अतः साधारण जनता को कृषि एवं व्यापार से प्राप्त आय का नगण्य अंश ही प्राप्त होता था । यातायात की कठिनाइयों के कारण उत्पादों के वितरण एवं मूल्य नियंत्रण में भी कठिनाइयाँ थीं । वस्तुओं के मूल्य सारे देश में एक समान नहीं थे । सामानों पर चुंगी लगती थी । बिक्रीकर भी देना पड़ता था । इन स्रोतों से राज्य की आय बढ़ गयी थी पर सामान्य जनता दुःख-दारिद्रय में डूबी थी । अकबर से पूर्व सामान्य प्रजा की सामाजिक स्थिति बदतर थी । समाज उच्च, मध्यम और निम्न वर्गों में बँटा था । इनकी आर्थिक, सामाजिक स्थिति में बड़ी विषमता थी । उच्चवर्ग के लोग ऐशोआराम एवं भोगविलास में डूबे थे । मध्यमवर्ग की संख्या कम थी और उनके साधन भी सीमित थे । उनका जीवन सादा और आर्थिक स्थिति सामान्य थी । कभी-कभी कुछ व्यापारी धनवान् भी हो जाते थे पर वे अपनी सम्पत्ति सामन्तों - सरदारों से छिपा कर रखते थे । सामन्तों सरदारों की सम्पन्नता और समृद्धि अकूत थी । उनके अधिकार असीम और अबाध थे । उनमें और समाज के शेष दो वर्गों में स्वामी और सेवक का सम्बन्ध था । निम्नवर्ग के लोगों को तो भरपेट भोजन भी मुहाल था । वे आजीवन बँधुआ रहते थे । बेगार करना, अपमानित होना, भूखों मरना उनकी नियति थी । अच्छे वस्त्रों और शिक्षा आदि की वे कल्पना भी नहीं कर सकते थे । वे दासों का जीवन जीने के लिए विवश थे । दरिद्रता और अशिक्षा के कारण सामाजिक जीवन पतनशील था । मूर्ख और भूखी जनता को धर्म के नाम पर खूब ठगा जाता था । तंत्रमंत्र, भूतप्रेत, जादूटोना करके पंडित, ओझा, पुजारी, पीर, औलिया सब ठगते थे । अकबर के समय सामाजिक:
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