________________
मरु - गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
जैनचरित काव्यों में वर्णित है ।
गोंडवाने की रानी ने भी अकबर से जमकर लोहा लिया किन्तु उसकी विशाल सेना के समक्ष रानी की वीरता व्यर्थ गई । सन् १५६९ में अकबर ने गोंडवाने पर अधिकार कर लिया । उसने बंगाल के सूबेदार मानसिंह को उड़ीसा पर आक्रमण के लिए भेजा और उसे भी अपने राज्य में मिला लिया । सन् १५८५ में काबुल पर विजय प्राप्त किया । इस प्रकार उसने सुदूर पूर्व से लेकर पश्चिम तक तथा कश्मीर से गोंडवाने तक के विशाल भूभाग पर अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया | जैनकवि ऋषभदास ने 'हीरविजय सूरि रास' में अकबर की विशाल सेना का ओजस्वी वर्णन किया है । सन् १५८६ में उसने अपने प्रिय दरबारी बीरबल एवं अबुलफजल को युसुफजाइयों का दमन करने के लिए भेजा । इस युद्ध में राजाबीरबल की मृत्यु हो गई जिससे अकबर बड़ा दुःखी हुआ था ।
I
शासनव्यवस्था - उसे अपने दादा बाबर एवं पिता हुमायूँ की अपेक्षा दीर्घ काल तक शासन का अवसर मिला अतः उसने नानाप्रकार के सुधारों द्वारा शासन व्यवस्था को सुस्थिर एवं उच्चकोटि का बनाया । जैनकवि दयाकुशल ने 'लाभोदय रास' में अकबर की शासनव्यवस्था का संकेत किया है। भूमि और मालगुजारी की व्यवस्था शुरू में शेरशाह सूरी के अनुसार ही चली । उसका विशाल साम्राज्य १८ सूबों में विभक्त था जिसका शासन सूबेदार करते थे। सूबेदार ही सूबे में सम्राट् का प्रतिनिधि होता था । वह सम्राट् के प्रति उत्तरदायी होता था । प्रान्तों का विभाजन सरकारों, सरकारों का परगनों और परगनों का गाँवों में किया गया था जिनमें क्रमशः फौजदार, शिकदार और मुकद्दम नामक अधिकारी शासन व्यवस्था चलाते थे । शासनतंत्र आठ भागों में बँटा था - मालविभाग, शाहीमहल, सेना व वेतन विभाग, कानून ( फौजदारी व दीवानी), धर्म और खैरात, लोकचरित्र नियंत्रण विभाग, तोपखाना और डाकचौकी तथा सूचना विभाग । प्रत्येक विभाग के लिए एक मंत्री जिम्मेदार होता था । अनेक विदेशी लेखकों ने अकबर के शासन प्रबन्ध की बड़ी प्रशंसा की है । नियुक्तियों में भेदभाव कम हो गया था । प्रत्येक धर्म के लोगों को जीवननिर्वाह का समान अवसर दिया जाता था ।
उसकी कचहरी तुर्की, मंगोल और ईरानी आधार पर गठित की गई थी । राज्य की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ थी क्योंकि कृषि और व्यापार
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org