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________________ उपोद्घात आदिलशाह के मंत्री हेमू ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया । खबर मिलते ही अकबर ने दिल्ली की तरफ कूच किया और १५ नवम्बर सन् १५५६ को पानीपत के मैदान में हेमू को पराजित किया। इस युद्ध में अकबर के सेना की देखरेख उसके संरक्षक बैरम खाँ ने की । अकबर दिल्ली की गद्दी पर बैठा और बैरम खाँ ने उसके संरक्षक के रूप में राजकाज संभाला। उस समय देश की परिस्थिति बड़ी डांवाडोल थी। राजनीतिक अव्यवस्था के साथ ही भयंकर दुष्काल के कारण आर्थिक तंगहाली थी किन्तु अबकर ने इन कठिनाइयों का मुकाबला बड़ी योग्यतापूर्वक किया। उसने बैरमखाँ की बढ़ती हुई निरंकुशता को देखकर उसे सं० १६१७ में कैद कर लिया और सं० १६१८ में उसने सर्वतन्त्र स्वतन्त्र शासक के रूप में भारत की शासन सत्ता स्वयं संभाल ली। साम्राज्य विस्तार-उसने ग्वालियर, अजमेर और जौनपुर की विजयों से अपना राज्य विस्तार प्रारम्भ किया। स० १६१९ (सन् १५६२) में जब वह ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह अजमेर जा रहा था तो मार्ग में घोसा नामक स्थान पर आमेर के राजा भारमल (बिहारीमल) ने मिल कर उसकी न केवल अधीनता स्वीकार की अपितु अपनी कन्या भी अकबर से ब्याह दी। उसी रानी से सन् १५६९ में सलीम (जहाँगीर) पैदा हुआ। उसके बाद अकबर ने क्रमशः रणथम्भौर, कालिञ्जर, जोधपुर, बीकानेर और जैसलमेर के राजाओं को अधीन बनाया तथा कुछ की राजकुमारियों को मुगलहरम में ले आया। सन् १५६७ में उसने चित्तौड़ के राणा उदयसिंह पर चढ़ाई की। कहा जाता है कि इस युद्ध में ४० हजार हिन्दुओं का वध हुआ। कहते हैं कि मृत हिन्दुओं के जनेऊ ७४॥ मन तौले गये थे। तभी से ७४॥ शपथ के रूप में प्रचलित हो गया था। सन् १५६७ के युद्ध में मरने वालों की संख्या राधाकमल मुखर्जी ने ३० हजार बताई है। उनके पुत्र राणा प्रतापसिंह ने आजीवन अकबर के विरुद्ध संघर्ष किया। अपने दृढ़निश्चय, शौर्य और स्वाभिमान के बल पर वे बड़ी-बड़ी मुसीबतें हँसकर झेल गये परन्तु अधीनता नहीं स्वीकार की। इस संघर्ष में उनके जैन मंत्री भामाशाह ने उल्लेखनीय सहायता की। भामाशाह तथा उनके वंशजों के उत्सर्ग और स्वामिभक्ति की गौरवगाथा कई १. डा० राधाकमल मुखर्जी-भारत की संस्कृति और कला पृ० २६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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