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________________ २५० मरु - गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास: अन्त -श्री आगमगच्छे गहिगहिउ ( गुरु राजीयो ) श्री न्यारतन सूरिंद, तास गछ गुण राजीउ, पूज्य पंडित रे तस तणइ सुपसाउलाइ धर्महंस कवि जे नरनारी भणइ गुणइ ऋद्धि वृद्धि रे हेम मुणिंद । भाखइ रे । मंगलमाल । ' श्री देसाई ने जैन गुर्जर कविओ (प्र० सं० ) में इसके अतिरिक्त: संयम रत्नसूरि स्तुति को भी इन्हीं की रचना बताया था किन्तु नवीनसंस्करण में संपादक ने इसे अन्य धर्महंस की कृति कहा है । आगम गच्छ में इसी के आस-पास एवं अन्य धर्महंस हो गये हैं । उनका विवरण भी साथ ही दिया जा रहा है । --- धर्म हंस – (ii) आप संयमरत्न सूरि के शिष्य विनयमेरु के शिष्य थे संयम रत्न का समय सं० १५८० से १६१६ तक मान्य है अतः आगमगच्छीय इन धर्म हंस का समय १७वीं शती का प्रथम चरण ही होगा । इस कवि ने अपने गुरु की स्तुति में संयम रत्न सूरि स्तुति लिखा है जो जैन ऐतिहासिक गुर्जर काव्य संचय में प्रकाशित है । उसके अनुसार संयमरत्न प्रागवंशीय वैश्य कुल में सं० १५९५ में उत्पन्न हुए थे । इन्होंने अपने अनुज विनयमेरु को गच्छभार सौंपा था । प्रस्तुत स्तुति उन्हीं विनयमेरु के शिष्य धर्महंस ने लिखी है । इसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है— सरसति सामिणि वीनवू, प्रणमू जिनवर देव, हंसवाहन गजगामिनी सुरनर सारइसेव | इसमें कुछ साहित्यिक स्थल भी हैं । संयम हीन साधु के संबंध में afa की यह उक्ति देखिये नवि सोभइ जिम हाथी ओ रे, दंत बिना उत्तंग, रूप वलि करी आगलु रे, गति बिना तुरंग । चन्द्र बिना जिम रातडी रे, गंध बिना जिम फूल । उसी प्रकार मुनिवर चरित्रहीन तिम, नवि सोभइ गुणचंग, सर्वविरति तिणि सोहती, पालि मनि जिरंग । २ १. जैन गुर्जर कविओ- - भाग ३ पृ० ७०२-७०३ ( प्रथम संस्करण ) और भाग २ पृ० ११७- ११८ ( द्वितीय संस्करण) २. जैन ऐतिहासिक काव्य संचय (सं० मुनि जिनविजय ) रचना क्रम सं० २४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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