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________________ धर्नसिंह २४९ इनके सम्बन्ध में अधिक निश्चय पूर्वक नहीं कहा जा सकता। आपकी अन्य रचना मल्लिनाथ स्तवन का रचनाकाल सं० १६०७ बताया गया है किन्तु यह भ्रान्तिपूर्ण है इसकी अन्तिम पंक्तियां इस प्रकार श्री रतनसंघ गणीन्द्रतस पट केशवजी कूलचंद ओ, तस पटि दिनकर तिलक मुनिवर श्री शिवजी मुनिन्द । धर्मसिंह मुनि तस शिष्य प्रेमी पूण्या मल्लि जिणंद ।' कवि ने गुरु परम्परा के साथ रचनाकाल एवं रचनास्थल इस प्रकार बताया है। संवत नय निधि रस शशिकर श्री दीपावली श्री कारए, ऋङ्गार मरुधर नयर सुन्दर बीकानेर मझार ए। श्री संघ वीनती सरस जाणी कीधो स्तवन उदारए, श्री मल्लि जिणवर सेवक जननि सदाशिव सुखकार ए। इसकी प्रति आर्या जवणादे के पठनार्थ लिखी गई जो दिगम्बर जैन संभवनाथ मन्दिर, उदयपुर में सुरक्षित है। इससे गुरुपरम्परा ठीक मिल जाती है और निश्चय ही उन्हीं शिवजी ऋषि के शिष्य धर्म सिंह की यह रचना मल्लिनाथ स्तवन भी है। इसमें जो रचनाकाल दिया है उसके आधार पर सं १६०७ के स्थान पर सं० १६९७ होना चाहिये । इससे उनकी अन्य रचनाओं के काल से भी सामञ्जस्य बैठ जायेगा-(निधि =९ और नय =७) धर्महंस-आगमगच्छ के ज्ञानरत्न सूरि के शिष्य हेमरत्न सूरि आपके गुरु थे। आपने नववाडि (ढाल ९, कड़ी ५७ सं० १६२० के लगभग) की रचना की। इसका आदि आदि आदि जिणेसर नमउं, मयण (मोह) महाभड लीलां (हेला) दमउं । नवनिधिवाडी जे ब्रह्मनी, जासवयो ते कुमति कर्मनी। यती अनइ श्रावक ते जाणि, ते पालइ जिनवर नी आणि । आन्याभंगि समकित जाइ, कांजी थी किम दही जा थाइ । १. डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल-राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डार की ग्रन्थ सूची ५वां भाग पृ. ७५२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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