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________________ २४८. मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास की। श्री मो० द० देसाई इसका रचनाकाल सं० १६९२ और रचनास्थान उदयपुर बताते हैं। जैन गुर्जर कविओ के द्वितीय संस्करण में संपादक ने सूचित किया है कि पाटण में धर्मसंग या धर्मसिंह कृत शीलकुमाररास अथवा मोहनवेलिरास की प्रति है। शायद वह यही रास है। उसमें रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है 'नय मंदन रसचंद संवत्सरा' । किन्तु द्वितीय संस्करण में रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है ऋषि नाकर शिष्य देवजी मुनिवर, तस शिष्य कहि सुविचार, नयन नंद रस चंद संवछर, श्रावण पून्य शशिधार । रचना स्थान-सुरतरु सरखा सवि गुरु जाणी आणी प्रेम अपार मे, रास सुन्दर रुचिर रागि, उदेपुर मझार अ।' शिवजी की परम्परा के सम्बन्ध में कवि ने लिखा है कि भगवान महावीर के दो हजार वर्ष पीछे रुपि ऋषि हुए। उनके पट्टधर जीवराज और उनके पट्टधर कुंवर जी हए । कुवर जी के श्री मलजी और श्री मलजी के रतन ऋषि, रतन ऋषि के पट्टधर केशवजी हुए, इनके शिष्य महामुनि शिवजी ऋषिराय हुए। उन्हीं शिवजी के संबन्ध में यह रचना की गई है-- सुखदायक शिवजी तणोगाऊ रास रास रसीक करि रंग ढाल विशाल प्रथम आख्यानि, कहि मुनि धर्म संघ । जैन गुर्जर कविओ द्वितीय संस्करण के संपादक का अनुमान है कि शायद शिवकुमार ऋषि का नाम ही शीलकुमार है अतः शीलकुमार रास या शिवजी ऋषिरास एक ही रचना है। इनकी अन्य तीन रचनायें प्राप्त हैं जो सभी प्रकाशित हैं। तीनों संझाय हैं - षट्साधुनी संज्झाय, सामायिक संज्झाय, और रत्नगुरुनीजोड या संज्झाय । प्रारम्भिक दोनों रचनाओं में गुरु परम्परा नहीं है । इसलिए १. श्री अगरचन्द नाहटा-परम्परा पृ० ९१ २. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ५८५ और भाग ३ पृ० १०८० (प्रथम संस्करण) ३. वही, भाग ३ पृ० २९६-९७ ४. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० २९६-२९७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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