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________________ २४४ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इसका रचनाकाल सं० १६५२, भाद्र वदी १० और रचना स्थान खंडेरा है, यथारचनाकाल-संवत सोल बावन वच्छरइ, भाद्रव वदि दसमी दिनइ, हालार मध्ये पुन्यवंत नगरइ, खंढरा नामइ भलि ।। वरसिंह को गुरु मानने का आधार ये पंक्तियाँ भी हैं गायसु गुण जसवंत जीवा सुणु भवीयण सार, ने तार मुनिवर तेह छइ, सर्व जीवना आधार । आधार सर्व जीवना नइ मनमोहन राय, तास तणा गुण वर्ण, श्री वरसिंह तणइ पसाय ।' इस कृति की प्रारम्भिक पंक्तियां निम्नाङ्कित हैं सकल गुणे करी सारदा मन धरी, मागुअ बुद्धि विनइ करी, दिउ मुज्झ वाणीय, मांगु मा ब्रह्माणीय । राणी अचुल्ल हेमवंत नी अ, पद्मद्रह वासिनी, नमो माता सासणी, जास पसाइ गुण गाइंसु । धर्मप्रमोद खरतरगच्छीय कल्याणधीर के शिष्य थे और संस्कृत के पूर्ण पंडित थे। इन्होंने संस्कृत में चैत्यवंदनभाष्य, लघुशांति वृत्ति टीका आदि लिखा है। मरुगुर्जर या पुरानी हिन्दी में आपकी एक रचना का उल्लेख मिलता है 'महाशतक श्रावक संधि किन्तु इसका विवरण उद्धरण उपलब्ध नहीं है । धर्मभूषण-आप दिगम्बर साधु देवेन्द्रकीति के प्रशिष्य एवं धर्मचंद्र के शिष्य थे। आपने 'चंपकवती चौपइ या शीलपताका चौपाई' की रचना की। देवेन्द्रकीर्ति का सं० १६०४ में लिखा प्रतिमालेख प्राप्त है। ये सरस्वती गच्छ के बलात्कारगण शाखा के भट्टारक चन्द्रकीर्ति के शिष्य थे । अतः देवेन्द्रकीर्ति के शिष्य धर्मचंद्र और उनके शिष्य धर्मभूषण १७वीं शताब्दी के अंतिम चरण में अवश्य विद्यमान रहे होंगे। इस रचना की प्रतिलिपि भी सं० १७५९ की प्राप्त है अतः रचना के १७वीं शताब्दी के अन्त में लिखे जाने की पर्याप्त संभावनायें हैं। कवि ने. रचनावर्ष नहीं दिया है, मास तिथि का उल्लेख मिलता है यथा १. जैन गुर्जर कविओ भाग २ तृ० २८५-८६ (द्वितीय संस्करण) २. श्री अगरचन्द नाहटा-परम्परा पृ० ७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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