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________________ धर्मकीर्ति २४३ सुमतिगणि, दयाकुशल, धर्ममंदिर, समयनिधान, ज्ञानधर्म और सुमतिवल्लभ आदि थे। सं० १७१९ ज्येष्ठ कृष्ण ३ शुक्रवार को जिनसागर सूरि का स्वर्गवास हो गया । धर्मकीर्ति कृत जिनसागर सूरि की कथा का यही सारांश है । इसके वर्ण्य विषय के संबंध में कवि ने लिखा है कवणपिता कुण मातु तस, जनम नगर अभिहाण, कुण नगरइ पद थापना, धरमकीरति कहइ वषाणि । इसकी अन्तिम पंक्तियाँ इस प्रकार हैं तां प्रतपउ गुरु महियलइ, जां जगनइ दिनईस, धरम कीरति गणि इम कहइ अ, पूरे सकल जगीस।' 'मृगांक पद्मावती चौपइ' की अपूर्ण प्रति नाहटा संग्रह में है। २४ जिनबोल स्तवन और वरकाणायात्रा स्तवन का अधिक विवरण नहीं मिल सका है। ऐतिहासिक जैन काव्यसंग्रह में हिन्दी भाषा के पाँच सवैये 'जिनसागरसूरि सवैये' नाम से हर्षनंदनकृत भी संकलित है इससे लगता है कि सयमसुन्दर के शिष्य हर्षनंदन आदि सभी जिनसागर सूरि के साथ थे। धर्मदास-आप लोकागच्छीय बूरा के शिष्य शामल जी के शिष्य जीवराज के शिष्य थे, किन्तु जैन गुर्जर कविओ के नवीन संस्करण में इन्हें वरसिंह का शिष्य बताया गया है। इस संस्करण के संपादक श्री जयंत कोठारी ने स्पष्ट किया है कि कवि ने बुरा के प्रशिष्य एवं शामल जी के शिष्य जीवराज के सानिध्य में वरसिंह के प्रसाद से अपना 'जसवंत मुनिरास' नामक ग्रन्थ लिखा अतः प्रतीत होता है कि वह वरसिंह का शिष्य होगा। कवि ने गुरुपरंपरा इस प्रकार बताई है ऋषि श्री बूरा शिष्य सामल जी जीवराज गुणसारु , तास सानिधि रचीइ रंगइ, हइ हर्ष अपारु । अति भाव आणी निरमल वाणी, दिनदिन प्रति गुणगाइ, धर्मदास कहे तुम्हें सुण भवीयण, साधु सेवतां सुख पाइथे । १. ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह पृ० १७८-१८९ २. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ८१९ (प्रथम संस्करण) ३. वही, भाग २ पृ० २८५-२८६ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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