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धनविमल
२४१ सूत्रबाला व बोध' की रचना की। ये मूलतः गद्यलेखक थे । इस कृति की प्रति अंबालाल संग्रह पालीताणा में उपलब्ध है। श्री देसाई ने इन्हें १८वीं शताब्दी में दिखाया था किन्तु जैन गुर्जर कविओ के नवीन संस्करण के सम्पादक श्री जयन्त कोठारी ने इन्हें १७वीं शताब्दी का लेखक बताया है। उसका कारण यह बताया है कि विशालसोम सूरि का समय १७वीं शताब्दी में था अतः ये १७वीं शती के लेखक हैं । संभवत प्रथम संस्करण में श्री देसाई ने भूल से इन्हें १८वीं शताब्दी में रख दिया होगा।
धर्मकोति-आप खरतरगच्छीय जिनचंद्रसूरि के शिष्य धर्मनिधान उपाध्याय के शिष्य थे । गद्य और पद्य विधाओं में रचना करने की कुशलता आप में समानरूप से देखी जाती है । पद्य में नेमिरास, जिनसागरसूरि रास, 'मृगांक पद्मावती चौपइ', 'वरकाणा यात्रा स्तवन' और चौवीस जिनबोल आदि आपकी उल्लेखनीय रचनायें हैं । गद्य में आपकी एक रचना 'साधुसमाचारी बालावबोध' प्राप्त है। आपकी भाषा शैली और काव्यशिल्प का नमूना देने के लिए 'नेमिरास' की कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं। यह रास ७१ कड़ी का है और सं० १६७५ फाल्गुन शुक्ल ५ रविवार को लिखा गया है। इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ इस प्रकार हैं :
सरसति माता मुझ भणी, देजे अविरल बुद्धिविशाल कि, नेमि तणा गुण चित्त धरी, पभणु रंगइ अतिहि रसाल कि ।। सील सिरोमणि नेमि जी, गाइसुहुँ जिणवर सुखकार कि, सील सुजस जगि विस्तर्यउ, जादव कुलनउ मे सिणगार कि ।
इसकी रचनातिथि और अपनी गुरुपरंपरा अंतिम पंक्तियों में कवि ने इस प्रकार बताई है
खरतरगछि गुणनिलउ, जुगप्रधान जिणचंद मुणिंद कि, पाठक धरमनिधान जी, धरमकीरति मनि धरिअ आणंद कि, सोलह सय पचहत्तरइ फागुण सुदि पंचमि रविवार कि,
रास भण्यउ जिणवर तणउ, सयल संघनइ मंगलकार कि।" १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ खण्ड २ पृ० १६२५ (प्रथम संस्करण) २. वही, भाग ३ पृ० ३२० (द्वितीय संस्करण) ३. श्री अगरचन्द नाहटा-परम्परा पृ० ८२ ४. वही, भाग ३ पृ. १८९ (द्वितीय संस्करण) ५. वही
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