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________________ २३८ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कवि ने अपनी मरुगुर्जर (हिन्दी) भाषाशैली को लोकगिरा कहा है अर्थात् वह जनता की वाणी थी। ये तपागच्छीय कल्याणविजय उपाध्याय के शिष्य थे। इनकी गद्यशैली का नमूना मिलने से तत्कालीन लोकप्रचलित भाषा शैली का पता चलता, लेकिन वह संभव न हो सका। धनहर्ष या सुधनहर्ष -आप इस शताब्दी के अच्छे रचनाकार थे । तपागच्छीय हीरविजय सूरि की परंपरा में धर्मविजय के आप शिष्य थे। आपकी चार-पाँच रचनाओं का पता चला है, जिनका विवरण आगे दिया जा रहा है, १. जंबूद्वीपविचार स्तवन (१३ ढाल सं० १६७७ मकर संक्रान्ति पोस वदी १३ रविवार ), २. देवकुरुक्षेत्रविचार स्तवन, ३. तीर्थमाला सं० १६८१ बहुलमास सुदी ५ रविवार, ऊना और ४. 'मंदोदरीरावणसंवाद' मधुमास सुदी ३, रविवार, सेनापुर । जंबूद्वीप विचार स्तवन आदि श्री जिन चउवीसइ प्रणमीनइ, वलिप्रणमीगुरु पाइ रे। ब्रह्माणी नइ करीअ वीनती, मुझनइ तुसो माई रे।। जंबद्वीप विचार लिखस्य किंपि जाणवां कामि रे, यथा प्रकाशो वीर जिणिदि पूछइ गौतम स्वामि रे । रचनाकाल-संवत सोल सत्योतरइ अ, संक्रान्ति मकरि रवि संचरइ अ, पोस बहुल रवि तेरसि ओ, वलि दश वागी मूलि वसि । हीर जी की प्रशंसा के साथ कवि अकबर का इस प्रकार उल्लेख करता है श्री हमाऊ सुत नृपोकव्वरो, तेणि जसकीर्ति जिन श्रवणि निसुणी, दर्शनार्थ समाकारितो यो गुरु, निज समिये भवांभोधितरणी।' इसकी अन्तिम पंक्तिवाँ इस प्रकार हैंअंत-तेह गुरु हीरना शिष्य सोहाकरा, धर्मविजयाभिधा विवुधचंदा, तास शिशु इम कहइ, क्षेत्र सुविचार अ, भावि भणतां सुद्धनहर्षवृंदा । 'तीर्थमाला' का रचनाकाल अस्पष्ट है । यथा १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ. २०६ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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