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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सकल भव्य सुखकर सदा, नेमी जिनेश्वर राय, यदुकूल कमल दिवसपती, प्रणम् तेहना पाय । . जगदंबा जय सरस्वती, जिनवाणी तुझकाय, अवीरल वाणी आपने, तु तूठी मुझ माय ।' देवेन्द्रकीति शिष्य-ये दिगम्बर परम्परा के देवेन्द्रकीर्ति के शिष्य 'थे। इन्होंने हिंदी में आदित्यवार कथा ( गा० ९० ) लिखी है जिसका रचनाकाल नहीं है किन्तु रचना १७वीं शताब्दी की ही है। इसमें आदित्यवार या रविव्रत का माहात्म्य बताया गया है। धरणेन्द्र और पद्मावती की कृपा भक्त को रविव्रत से प्राप्त होती है। वे उसकी सभी मनोकामनायें पूर्ण करते हैं । इसका प्रारम्भ देखिये प्रथम समिरि जिनवर चौविस, चौदह सै त्रेपन न्यु मुनीस, समिरो सारद भक्ति अनंत, गुरु देवेन्द्रकीर्ति महंत । अंत-रविव्रत तेज प्रताप गई लच्छि फिरि आई, कृपा करी धरनेन्द्र और पद्मावती आई। जहाँ गये तहां रिद्धिसिद्धि सब ठौर जु पाई, मिलै कुटंब परिवार भले सज्जन मन भाओ। 'धनजी-अंचलगच्छ के विद्वान् मुनि दयासागर आप के गुरु थे। दयासागर या दामोदर का समय सं० १६६५ के आसपास निश्चित किया जा चुका है। अतः उनके शिष्य धनजी भी १७ वीं शती के अन्तिम चरण में वर्तमान रहे होंगे। 'सिद्धदत्तरास' नामक आपकी एक रचना प्राप्त है जिसका रचनाकाल निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है। रचना में कवि ने गुरु परम्परा तो दी है किन्तु रचनाकाल नहीं है। गुरु परम्परा के अन्तर्गत कवि ने कल्याणसागर और दयासागर का उल्लेख किया है । रचना का प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है चउविह मंगल मनि धरउ, जे शिव सुख दातार, वलि समरउ मुखमंडनी, सुरराणी सुखकार । १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १०९६ (प्रथम संस्करण) २. वही ३. वही, भाग ३ पृ० ३४३-३४४ (द्वितीय संस्करण.) एवं भाग ३ खण्ड २ पृ० १०९३ (प्रथम संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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