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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास.
देवीदास-ऐतिहासिक जैन काव्यसंग्रह में समयसुदरउपाध्यानां गीतम् शीर्षक के अन्तर्गत प्रकाशित सात कड़ी का एक गीत उपलब्ध है। जिसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है
समयसुदर वाणारस वंदिए सुललित वाणि वखाणो जी, राय रंजण गीतारथ गुणनिलो जी, महिमा मेरु समाणो जी।
श्री समयसुन्दर ने मुसलमान शासक अकबर को प्रभावित कर जीवदया का जो महत्वपूर्ण कार्य किया था, इस गीत में उसकी प्रशस्ति की गई है। इसमें समयसुन्दर के सुयोग्य शिष्य वादी हर्षनन्दन का भी उल्लेख किया है, यथा - हर्षनंदन सरखा शिष्य जेहने, वादी विरुद प्रसिद्धो जी, समयसुदर गुरु चिर प्रतपै सदा, ये देवीदास असीसो जी।'
इससे लगता है कि ये खरतरगच्छीय समयसुदर उपाध्याय के शिष्य थे। ये अपना नाम केवल देवीदास लिखते थे। इनकी अन्य रचना का पता नहीं चल सका है। यह निश्चय है कि देवीदास द्विज और देवीदास दो भिन्न कवि थे।।
देवेन्द्र –देवेन्द्र कवि विक्रम के पुत्र थे जो संस्कृत एवं हिन्दी के अच्छे कवि थे। विक्रम और गंगाधर दोनों भाई जैन ब्राह्मण थे । गुजरात के कुतलू खाँ के दरबार में जैनधर्म की प्रतिष्ठा बढ़ाने का श्रेय ब्रह्म शान्तिदास को था। इसी प्रभाव के कारण इन भाइयों के माता पिता ने जैन धर्म स्वीकार कर लिया था। देवेन्द्र ने महआ नगर में 'यशोधरचरितरास' की रचना सं० १६३८ में किया । रचनाकाल कवि ने इस प्रकार बताया है
संवत १६ आठत्रीसि आसो सुदी बीज शुक्रवार तो,
रास रच्यो नवरस भरयो महुआ नगर मझार तो। जैनग्रंथ सूची के संपादक डॉ०कस्त्रचन्द ने इसका अर्थ सं० १६८३ लगाया है जो उचित नहीं लगता। 'आठत्रीसि' अड़तीस होगा न कि
१. ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह–समय सुन्दर उपाध्याय गीतम् २. डा० कस्तूर चन्द कासलीवाल -राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डार की.
ग्रन्थ सूची ५ वां भाग पृ० २७
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