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देवचंद
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पृथ्वीचंद कुमार रास (सं० १६९६) आदि--
प्रणमु भगति भगवति भारती, जे तूठी आपई शुभमती।
जस सेवइ सुरनर भूपती, जेहनि नामई सुखसंपती । शीलगुण का प्रभाव दिखाने के लिए पृथ्वीचंद कुमार का चरित्र दृष्टान्त रूप में प्रस्तुत किया है, यथा
सीलवंत मांहि जस लीह, सील पालवा हूया सीह, ते तो पृथिवी चंद्र कुमार, गुणसागर पणि बीजे सार । सावली नगरि रही चोमासि, संवत सोल छन्नुइं उलासि,
फागुण सुदि अकादशी धारि, वार कहुं ते हवई विचारी।' इसकी अंतिम पंक्तियों में गुरुपरंपरा इस प्रकार कही गई है
तपगछपति गुरु गोयम समान, विजयदेव सूरि युगह प्रधान, सास पाटि प्रगटयो जिम भाण, विजयसिंह सूरि गुणनो जाण । वाचक भानचंद नो सीस, देवचंद प्रणमें निसदीस ।१७४।' जैन गुर्जर कविओ में पहले इनके नाम पर 'सुकोशल संझाय' भी श्री देसाई ने दिखाया था। लेकिन द्वितीय संस्करण के संपादक ने इस रचना को अन्य देवचंद की कृति बताया है जो गुरु परंपरा आदि की भिन्नता को देखते हुए उचित लगता है। उनका विवरण आगे दिया जा रहा है।
देवचन्द (ii) तपागच्छीय विजयदान सूरि के शिष्य विद्यासागर के शिष्य थे। इन्होंने सुकोशल महाऋषि संझाय अथवा गीत (१३ कड़ी) की रचना सं० १६०२ में की थी। पहले इसे भी देसाई ने विद्यासागर की रचना बताया था ( जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ६४७ ) लेकिन फिर इसे देवचन्द की कृति बताया (वहीं पृ० ७३२ प्र० सं०) श्री देसाई को इसके कर्ता के संबंध में बराबर शंका बनी रही। वे जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १०७२ पर देवचंद की और भाग ३ के खंड २, पृ० १५०२ विद्यासागर अथवा देवचन्द ? की रचना बताते हैं किन्तु
१. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० २९० ( द्वितीय संस्करण ) २. वही, भाग १ पृ० ५७९-८१ और भाग ३ पृ० १०७०-७२ (प्रथम
संस्करण)
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