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देद (जैनेतर कवि )
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देद - (जैनेतर कवि ) आपकी दो रचनायें मरुगुर्जर में प्राप्त हैं । ये रचनायें सं० १७०१ से पूर्व अर्थात् १७वीं शताब्दी की हैं । ये रचनायें छोटी हैं पहली का नाम 'कवीरापर्व' और दूसरी का 'अभिमन्यु नु ओझणं' है । दोनों रचनायें महाभारत की कथा पर आधारित हैं । खाण्डवबनदहन के समय से ही कवीरा के मन में पाण्डवों के प्रति द्वेष सुलग रहा था । उसने बनवास के समय उसका बदला लेना चाहा, किन्तु भीम ने उस दानव का वध करके सबकी रक्षा कर ली । इसी प्रसंग का वर्णन कवीरा पर्व में कवि ने किया है । माधवदास कवि ने महाभारत की रचना के ७६वें से ७८ वें छन्द में इस प्रसंग का वर्णन किया है । इस रचना के प्रारम्भ में गौरी-गणेश की वंदना, तत्पश्चात् शारदा की प्रार्थना है । उसके बाद कवि लिखता है
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पंच पंडवं बनमांहइ वासइ, कवीरु परवत श्रावइ, वहु वयर आगइ पांडव बननु, वे मन माहइ सालइ । जब भीम राक्षस का वध करके सबको बचा लेते हैं तो अंत में कवि कहता है
भीम तणा बंधव सवइ मलीआ, कपट कबीरो सीजइ, देद भइ रे स्वामी माहरा, हवइ अमनइ कृपा लीजइ । अंकमना ओ कथा सांभलइ, तीर्थदान फल अह, यंत्र मंत्र बीष उतरइ, वीभ पातिग नासइ देह | १४६ |
यह संभवतः १४६ कड़ी की ही रचना है । इसकी प्रति सं० १७०१ की लिखित प्राप्त है अतः यह अवश्य उससे पूर्व की कृति होगी । अभिमन्यु ओझण' - कवि महाभारत का बड़ा प्रशंसक प्रतीत होता है। वह लिखता है कि जो पुण्य काशी, प्रयाग, द्वारिका, गंगा आदि तीर्थ सेवन या सूर्य, चन्द्र पूजन से या चंद्रायण आदिव्रत से या दान-पुण्य, शील- तप से होता है वह पुण्य महाभारत सुनने से होता है । इस रचना पर सं० १५५० के आसपास लिखित देल्ह कवि कृत अभिमन्यु ओंझणु' का प्रभाव दिखाई पड़ता है ।
प्रारम्भ -- गवरीनंदन प्रणमूं पाये, अहनी कृपाये ग्रंथ वंधाये,
सीद्ध बुद्ध हीये आती घणी, अखील वाणीअ वरणतणी ।।
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१. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ खण्ड २ पृ० २१६२ (प्रथम संस्करण )
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