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________________ २२० मरु-गुर्जर जैन साहित्य का वृहद इतिहास दल्लभट्ट-ये पार्श्वचंद्र गच्छ के हीरराज के शिष्य पुजराज के अनु-यायी भक्त थे। आपने सं० १६९९ फागुन शुदी में 'पूंज मुनि नो रास' (२१ कड़ी) लिखा । इसमें पुजराज का गुणानुवाद किया गया है। यह रचना जैन राससंग्रह भाग १ पृ० १६१-६३ पर प्रकाशित है। इसका रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है संवत नवाणुआं फागुण सुदि रे, मोटो मान जगीश, नवहजार वाणु आगला रे, वधे नरनारी आसीश । ऋषि हिरराज सुपसावले रे, ऋषि भी पुजराज गुणसार रे । दल्लभट्ट सुख संपति लहे रे, भाणजो सह नरनार रे।' इस रास की प्रारम्भिक पंक्तियाँ इस प्रकार हैं सरसति सामिणि विनवु, प्रणमी सद्गुरु पाय लाल रे, क्षमासमण गुणआगलो, अ गिरुओ ऋषि रायलाल रे । पुजराज गुण गाइजे........" दर्शनविजय या दर्शनमुनि-आप हीरविजयसूरि की परंपरा में मुनिविजय के शिष्य थे। आपकी प्रथम रचना 'चंदायणोरास' सं० “१६०१ आसो सुदी १० को पूर्ण हुई । श्री मो० द० देसाई ने इसे दर्शनमुनि की रचना मानकर इनका विवरण अलग दिया था। लेकिन जैन गुर्जर कविओ के द्वितीय संस्करण के संपादक का मत है कि दर्शनमुनि और दर्शनविजय एक ही व्यक्ति हैं। दर्शनविजय की तीन अन्य रचनायें –'नेमिजिनस्तवन', 'प्रेमलालक्षीरास' और 'विजयतिलक सूरि रास' उपलब्ध हैं। इनमें से प्रथम रचना के कर्ता को श्री देसाई ने हीरविजय > मुनिविजय शिष्य बताकर एक भिन्न कवि कहा था, तथा अन्तिम दो के कर्ता दर्शनविजय को राजविमल>मुनिविजय शिष्य बताकर एक अन्यकवि बताया था किन्तु नवीन संस्करण के संपादक की स्पष्ट राय है कि ये तीनों व्यक्ति एक ही दर्शनविजय हैं अतः इन चारों कृतियों का लेखक एक ही दर्शनविजय को स्वीकार करना उचित लगता है। १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ३३७ (द्वितीय संस्करण) और भाग ३ पृ० १०९० (प्रथम संस्करण) २. वही, भाग १ पृ० १८२ (प्रथम संस्करण) ३. वही, भाग १ पृ० ५४९-५३ तथा भाग ३ ९०१ तथा १०३५-३९ ४. वही, भाग ३ पृ० ८६ (द्वितीय संस्करण) Jair Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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