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दयासागर
२१९ किया गया है। कवि ने यह रचना अपने गुरुभाई के आग्रह पर की थी, यथा
गुरुभाई लहुडउ रिषिदेव, विनयवंत सारइ नितसेव,
आदरि तेह तणइ ओ थइ, मदनराज ऋषि नी चउपइ ।' इसका प्रारंभ इन पंक्तियों से हुआ है
आदि जिणेसर अतुल बल, शांतिनाथ सुखकार,
नेमिपासु प्रणमं सदा, वीर विनेय भंडार । सुरपति कुमार चौपाई (सं० १६६५ बीजा भाद्र शु० ६ सोमवार) पद्मावतीपुर ( पुष्कर के पास ) में लिखी गई। इसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है
प्रणमुस्वामी शांतिजिन, मनवंछित दातार,
सुरपति जसु सेवा करइ, दरसण हरष अपार । यह रचना दान के विषय में लिखी गई है, यथा
सुरपति नामइ नृपकुमर, जिण जगि भोग महंत,
विलस्या दान प्रभाव थी, विरचिसु तास वृतंत । इसमें भी वही गुरुपरंपरा दी गई है जो मदनकुमार रास में थी। रचनाकाल -वत्सर विक्रमराय थी, सोल सहे पइसठि,
भाद्रवि बीजा श्वेत पख्यि, सोमवार तिहां छठि । स्थान-शिवशासन तीरथ बडु, पुष्कर नामि प्रसिद्ध,
तसु पासई पदमावती, फणि कणि रिध समृद्ध । लेखक और रचना का नामतास सीस वाचकपद धरइ, दयासागर गणि अम उच्चरई,
सुरपतिकुमार तणी चउपाइ, पदमावतीपुर मांहि थइ । दामोदर और दयासागर को पहले अलग-अलग माना गया था किन्तु बाद में दोनों को एक मान लिया गया। इसलिए इतना तो निश्चित है कि दामोदर और दयासागर एक ही हैं किन्तु पिप्पलक शाखा के दयासागर और आंचलगच्छीय दयासागर दो हैं या एक ? यह निश्चय नहीं हो पाया। इस संबंध में शोध अपेक्षित है। १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ. ९९ (द्वितीय संस्करण) २. वही, पृ. ९७ (द्वितीय संस्करण)
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