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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का वृहद् इतिहास सागर की मदननरिद्र चौपाई का रचनाकाल सं० १६१९ स्थान जालोर कहा गया है । काफी संभावना है कि ये रचनायें एक ही हों और सं० १६६९ के बदले भूल से १६१९ छप गया हो। इसका रचनाकाल इस प्रकार कहा गया है—(मदननरिद्र चौपाई)
सोलह सय उगणोत्तरइ पुर जालोर मझारि,
आसु सुदि दशमइं कियउ, कथाबंध गुरुवारि ।' इसमें भी संयम-शील का उपदेश दिया गया है, यथामदन महीपति चरित विचारि, बोल्यउं शील तणइं अधिकारि,
जे नरशील सदा मनि धरइं, शिवरमणी जे निश्चइ वरई। गुरुपरंपरा - श्री अंचलगच्छ उदधि समान, संघरयण केरउ अहिठाण ।'
उदयउतास वधारण चंद, श्रीधर्ममूर्ति सूरीश मुणिंद । आचारिज श्रीगुरु कल्याणसागर सम गुणनांण, तासपक्षि महिमाभंडार, पंडित भीमरतन अणगार । तास विनेय विनयगुणगेह, उदयसमुद्र सुगुरु ससनेह, ताससीस आणंदिइ घणइं, दयासागर वाचक
(पाठान्तर, मुनि दामोदर) इम भणइ। इस प्रकार हम देखते हैं कि इनका नाम दयासागर या दामोदर दोनों है । ये अंचलगच्छ से संबद्ध हैं। हो सकता है कि इनकी रचना मदनकुमार राजर्षि चरित्र पहले वाले दयासागर की रचना 'मदनचौपाई' से भिन्न हो। मदनकुमार रास की प्रशस्ति में मदनशतक का उल्लेख है जो इनकी १०१ दोहे की रचित हिन्दी रचना है। यह एक प्रेमकथा है । लेखक ने इसमें मदनशतक का भी उल्लेख किया है ।
मदनशतक ना दूहडा, अकोत्तर सयसार ।
ते पणि भइ पहिलां कीया, जाणइ चतुर विचार । मदनशतक की सरस प्रेमकथा का मदनराजर्षि चरित्र में विस्तार १. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ४०३-४०', भाग ३ पृ० ९०५-९०८.
(प्रथम संस्करण)
भाग ३ पृ० १०० (द्वितीय संस्करण) २. श्री अगरचन्द नाहटा-परम्परा पृ० ९०;
डॉ० हरीश-गुर्जर जैन कवियों की हिन्दी कविता की देन पृ० १२२२
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