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________________ दयाशील ૨૧૭ तास सीस दयाशील पयंपइ वंदु इला मुनि चंद रे । इलाची मुनि ना गुण गांता, पातिक दूरि पलाइ, श्री चिंतामणि पास प्रसादिइं ऋद्धि वृद्धि थिर थाइ रे ।' इसका प्रथम छन्द इस प्रकार है पणमवि सिरि जिणवर वंछित सुरनर सामी, वर्द्धमान विबुधपति पायं नमइ सिर नामी । चंद्रसेन चंद्रद्योत नाटकीय प्रबंध -सं० १६६७ भीनमाल में यह कृति रची गई। काव्यरूप की दष्टि से यह नुतन प्रयोग है। नाना प्रकार की ढालों और राग-रागिनियों से युक्त होने के कारण यह रचना नाटकीय आकर्षण उत्पन्न करती है। अन्त में कवि ने रचनाकाल इस प्रकार दिया है संवत मुनिरस सोल सोहइ, भीनमाल नगर मझारि, चंद्रद्योत चंद्र नरिंद्र चरितं, रचितं सांति अधारि ।' यह कृति चंद्रद्योत के चरित्र पर आधारित है। इसकी भाषा सरल प्रवाहयुक्त मरुगुर्जर है, यथा-- मेरी सज्जनी मुनि गुण गावरी, चंद्रद्योत चंद्र मुणिंद मेरा नामइ हुइ आणंद, संसार जलनिधि जलह तारण, मुनिवर नाव समान, मेरी०।३ दयासागर-खरतरगच्छ की पिप्पलक शाखा के आप साहित्यकार थे। श्री अगरचन्द नाहटा ने आपकी दो रचनाओं 'मदननरिन्द्र चरित्र' सं० १६१९ जालौर और चित्रलेखा चौपइ का उल्लेख किया है, किन्तु इनका विवरण-उद्धरण नहीं दिया है। दयासागर या दामोदर -आप अंचलगच्छीय कल्याणसागरसूरि> भीमरत्न > उदयसागर के शिष्य थे। इन्होंने भी मदनकुमार राजर्षि रास अथवा चरित्र लिखा है। इसका रचनाकाल सं० १६६९ आसो शुक्ल १० गुरु, जालौर बताया गया है। पिप्पलक शाखा वाले दया१. जैन गुर्जर कवि भो भाग ३ पृ० ९०४-५ (प्रथम संस्करण) २. वही ३. डॉ० हरीश-गुर्जर जैन कवियों की हिन्दी को देन पृ० १२१-१२२ ४. श्री अगरचन्द नाहटा-परंपरा पृ० ८८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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