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________________ २१६ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास लेखक दयारत्न की गुरु परम्परा को लेकर जो प्रारम्भ में शंका की गई थी, उस संबंध में यह पता चला कि जिनहर्षसूरि शिष्य दयारत्न ने सं० १६२६ में आचारांग की प्रतिलिपि लिखी थी और हर्षकुशल के शिष्य गुणरत्न के गुरुभाई दयारत्न ने एक प्रति सं० १६९२ में लिखी । क्या ये दोनों दयारत्न एक ही व्यक्ति हो सकते हैं।' दयाशील-आप अंचलगच्छीय विजयशील के शिष्य थे । इन्होंने सीलबत्तीसी, इलाची केवली रास, चन्द्रसेन चंद्रद्योत नाटकीया प्रबंध आदि रचनायें मरुगुर्जर में लिखी जिनका परिचय आगे प्रस्तुत है। 'सीलबत्तीसी' की रचना नवानगर में सं० १६६४ में हई। इसके कुल ३२ छन्दों में शील की महिमा बखानी गई है। उदाहरणार्थ कुछ पंक्तियां उद्धत हैं सील बत्तीसी वरण, सु मात करेसु प्रमाण, बेधक जन मुखि उच्चरइ सु सुरता करइ वखाण । सुरता करइं बखाण भाण जिम तेज विराजइ, सीलवंत नर जिके तास, त्रिभोवन जसच्छाजइ । सुरनर करइ प्रशंस वंस थिर थावन लील, दयाशील बम्हइ परनारि नेह तजि पालु सील ।' अन्तिम संवत सार सिंगार काय वली वेद संवच्छर, नूतनपुर वर मांहि सांति सानिधि लही वरतर। सीलबत्तीसी रंगि अंगि ऊलट धरी गाई, धर्मवंत नरनारि तास मनि खरी सुहाई । 'इलाचीकेवलीरास' सं० १६६६ कार्तिक वदी ५ सोम, को भुज में पूर्ण हुई। इसमें इलाची केवली की कथा दी गई है । रचनाकाल और गुरु परंपरा के लिए निम्नाङ्कित पंक्तियां देखिये अंचल गच्छि श्री धर्ममूर्ति सूरि सूरिसिरोमणि दीपइ, तस पाटि श्री कल्याणसागर सूरि मयण महाभड जीपइ रे । संवत षट रस वाण (काय) निशाकर, कातिक वदि सोमवारि, पांचमि जोडि करी ओ रूडी, श्री भुज नगर मझारि रे । वाचक वंश सुहाकर मुणिवर, श्री विजयशील मुणिंद, १. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० २५९ (द्वितीय संस्करण) २. वही, भाग ३ पृ० ९०३ (प्रथम संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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