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________________ मरु - गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास - जंबूस्वामी रास- - प्रथम रचना के १९ वर्ष बाद अर्थात् सं० १६२५. में आपने यह द्वितीय रचना की । जैन धर्म के अन्तिम केवली जम्बूस्वामी पर आधारित यह रास अति प्रसिद्ध और लोकप्रिय है । जम्बू राजग्रही के नगरसेठ अर्हत का पुत्र था । बचपन में ही उसने राजा श्रेणिक के उन्मत्त हाथी को वश में कर लिया था । १६ वर्ष की अवस्था में वह केरल के राजा की सहायता के लिए सेना लेकर गया और अपनी अपूर्व वीरता से विजय किया । चार कन्याओं से विवाह करता है । अंत में वैराग्य और केवलज्ञान का अधिकारी होता है इस प्रकार प्रबन्ध काव्य में वीर, ॠ गार और शांत आदि प्रधान रसों की निष्पत्ति का यथावसर अच्छा सुयोग प्राप्त हुआ है । जंबूकुमार के हृदय में रतिभाव उत्पन्न करने के लिए सुंदरी पत्नियाँ नाना उपाय और चेष्टायें आदि करती हैं, यथा २०८ कामाकुल ते कामिनी करिते विविध प्रकार, अंग देखाडि आपणां वलीवली जंबू कुमार । गीत गान गाहे करी, कुमर उपाई राग । - परन्तु जंबू पर प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि अधिकतर जैन काव्यों का लक्ष्य नारी सौन्दर्य के प्रति अरुचि उत्पन्न करके जीव के मन में वैराग्यभाव को जागृत करना है । कवि अपने इस लक्ष्य को अच्छी प्रकार प्राप्त कर सका है । भाषा सरल, सहज और प्रवाहयुक्त है । इसमें भी दूहा, चौपाई, वस्तुबंध, ढाल और राग-रागिनियों का प्रयोग किया गया है। जैन साहित्य में नेमि और स्थूलिभद्र के पश्चात् जंबू का चरित्र अत्यधिक मर्मस्पर्शी और लोकप्रिय है । अतः रास प्रभावशाली है । यह ब्रह्मरायमल्ल एवं भट्टारक त्रिभुवनकीर्ति-व्यक्तित्व एवं कृतित्व नामक ग्रंथ में प्रकाशित है । कुछ उद्धरण - जंबू का परिचय -- मगध देश राजग्रहि अर्हदास थिरसार, जिनमती कूखि अवतिरि जंबूकुमर भवतार । जंबू पर पद्मावती, कनकश्री, विनयश्री एवं लक्ष्मी नामक चार सुंदरियाँ मुग्ध थीं, कवि कहता है च्यार कन्या अछि अति भलीए, रूप सोभगनी खाणि । पृथु पीन पयोधरा, बोली अमृत वाणि । केरल युद्ध में जाते समय विन्ध्याचल पर्वत का वर्णन देखिये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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