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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास अमरसेन रास का उद्धरण नहीं प्राप्त हो सका अतः उसके रचनाकाल का ठीक निर्णय भी संभव नहीं हुआ।
त्रिभुवनकीति -आप रामसेनान्वय भट्टारक सोमकीर्ति की परंपरा में विजयसेन के शिष्य कमलकीति उनके शिष्य यशःकीर्ति और उनके शिष्य उदयसेन के शिष्य थे । आपके जन्म, परिवार और दीक्षा आदि का विवरण नहीं प्राप्त है। ब्रह्म कृष्णदास ने 'मुनि सुव्रत पुराण' में उदयसेन एवं त्रिभुवनकीर्ति का उल्लेख निम्न पद्य में किया है
कमलपतिरिवाभूत्सदुध्याद्यन्ततेन, उदित विशदपट्टे सूर्य शैलेन तुल्ये, त्रिभुवनपति नाथांह्यिदयासक्त चेता,
स्त्रिभुवनकीर्ति नामि तत्पट्टधारी।' आप संस्कृत, प्राकृत एवं हिन्दी के ज्ञाता थे। संस्कृत में आपने 'श्रुतस्कंधपूजा' नामक रचना की है। आपने गुजरात, राजस्थान, 'पंजाब, दिल्ली में खूब बिहार किया अतः इनकी भाषा गुजराती मिश्रित राजस्थानी है अर्थात् इनकी भाषा परवर्ती मरुगुर्जर भाषा का प्रतिनिधित्व करती है। मरुगुर्जर में आपकी दो रचनायें उपलब्ध हैंजीवंधररास और जम्बूस्वामीरास जिनका परिचय क्रमशः आगे दिया जा रहा है।
जीवंधररास सं० १६०६, कल्पवल्ली नगर में रचा गया एक प्रबन्ध काव्य है। जीवंधर के चरित्र पर आधारित रचनायें संस्कृत अपभ्रंश आदि में कई लिखी गई जैसे हरिश्चन्द्रकृत जीवंधर चम्पू, शुभचन्द्रकृत जीवंधर चरित्र, यशःकीर्तिकृत जीवंधर प्रबन्ध और अपभ्रंश में रइधकृत जीवंधर चरिउ और ब्रह्म जिनदासकृत जीवंधररास आदि । प्रस्तुत रास उसी शृंखला की एक सुन्दर कड़ी है । इसमें दूहा, चउपइ, वस्तुवंध, ढाल, राग और नाना रागिनियों का प्रयोग "किया गया है। राजपूत्र जीवंधर का जन्म श्मशान में हुआ था। एक अन्य महिला ने उसका पालन-पोषण किया। युवा होकर बड़ा पराक्रमी और प्रतापी राजा हुआ। अंत में वैराग्य हुआ और दीक्षा संयम द्वारा १. डा. कस्तूर चन्द कासलीवाल- ब्रह्मरायमल्ल एवं भट्टारिक त्रिभुवनकीर्ति
व्यक्तित्व एवं कृतित्व पृ० २७०
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