________________
२०५
त्रिकममुनि
तास सीस गणधर नमूं श्री गौतम मुनिराय,
अष्ट महासिद्धि संपनइ, पूरइ वंछित काज ।' रचना में गुरुपरंपरान्तर्गत रूपचंद, वस्तपाल, भैरव, नेमिदास,. आसकरण और वणवीर का सादर स्मरण किया गया है। रचनाकाल और स्थान आदि का विवरण इस प्रकार किया गया है--
संवत सोल नन्याण मास विराजइ भादव सुखकर हे, वरसइ अति असराल, कांठलिबोधि चिहुं दिस मनहरु हे। पक्ष वहुल तिथि तीज, श्री बुधवारु महामहिमा निलउ हे, अकबरपुर अभिराम महियलमंडण नगर सिरां तिलउ हे। तेथ कियउ चउमास श्री वणवीर सद्गुरु महिमा रली हे,
तास प्रसादइ अह, अधिक महारस कीधी मंडणी हे ।' बंकचूलरास-(१७ ढाल, सं० १७०६ भाद्र शुक्ल ११ गुरु, किशनगढ़): आदि श्री रिसहेसर पय नमी आदि पुरुष परधान,
जिण चउवीसी ऊपनो, प्रथम ही केवल ज्ञान । समरुं श्री चक्केसरी कुंडलहार विशाल, शीशफूल शिरझिगमिगे तिलक विराजत भाल । ___
xxx बंकचूल राजातणो रसिक कहुं अधिकार,
अकमना सुणतां थका पामीजे भवपार । गुरु परंपरा- तास तणे गछ दीपतो श्री वणवीर मुणिंद हो,
दरसण थी दोलत मिले मन में हुवे आणंद हो। तास सीस तीकम कीयो मे अधिकार अनूप हो,
सांभलता सज्जन जनां दिनदिन अधिकी चूप हो। रचनाकाल- संवत सतरै छडोतरै कीध चउमासो सार हो,
किसनगढ़े आणंद घणे श्री वणवीर उदार हो। भादवा सुदी अकादसी वृहस्पतिवार सुवार हो,
ढाल भणी सतरमी 'तीकम' कहै सुविचार हो । १. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ५८८-९१, भाग ३ खण्ड २ पृ० १५२०.
(प्रथम संस्करण) २. वही, भाग ३ पृ० ३३७-३४० (द्वितीय संस्करण) ३. वही
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org