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________________ २०२ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास तेजचंद-आप तपागच्छीय सकलचंद की परंपरा में मानचंद के शिष्य थे। आपने सं० १७०० मागसर वदी ५, सोमवार को 'पुण्यसार रास' लिखा जिसका प्रारम्भ इस प्रकार है - सकल सीद्ध चलणे नमु, नमु ते श्री जीवराय, समरुं सरसती सामिनी, वर द्यो करीय पसाय । पिंगल भेद न ओलखं, वगती नही व्याकर्ण, मूरखमंडण मानवी, हुं सेवक तुझ चरण । इसमें पुण्यसार की कथा के दृष्टान्त द्वारा दानपुण्य का माहात्म्य समझाया गया है, यथा दान ऊपरि मे अधिकार, सुणीले जो सहू नरनारि । इसका रचनाकाल देखिये संवत सतर मांहि भणो मे अधिकार पुन्यसारह भणो।' गुरुपरंपरा बताते समय कवि ने अंचलगच्छीय विजयदेव सूरि से लेकर चंदशाखा के सकलचंद, लक्ष्मीचंद, पुण्यचंद, वृद्धिचंद और मानचंद तक की नामावली गिनाई है। अपने को कवि ने मानचंद का शिष्य कहा है। तेजचंद मुनि अम भणंति, भणि गुणे तिहां काज सरंति । ते सवि पामइ वंछित सिधि, धन आरोग घरि अविचल ऋद्धि । यह रचना दसाड़ा में कोठारी अमथा के आग्रह पर की गई । तेजपाल-आप कड़वागच्छ के लेखक थे। आपने सं० १६५५ में दीक्षा ली थी और सं० १६८९ में आपका निधन हुआ। आपने सं० १६८२ में 'सीमंधर स्वामी शोभातरंग' की रचना ५ उल्लासों में की है। यह रचना अभयसागर द्वारा संपादित होकर सिद्धचक्र में प्रकाशित है। पहले श्री मोहनदास देसाई ने इसे सेवकर की रचना कहा था और सेवक को गुणनिधान का शिष्य बताया था किन्तु श्री अगरचंद नाहटा ने जैनसत्यप्रकाश में इस पर भलीभाँति विचार करके इसे तेजपाल की रचना बताया है। इसकी अंतिम पंक्ति में आये 'सेवक' १. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ५९८, भाग ३ पृ० १०९१ (प्रथम संस्करण), भाग ३ पृ० ३४१ (द्वितीय संस्करण) २. वही, भाग ३ पृ० ५८४ (प्रथम संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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