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डुंगर
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नाथ फाग या बारहमासा' सं० १५३५ के आसपास लिखा था । उन्होंने अपना नाम डूंगरस्वामी लिखा था, यथा
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अहे राजिमति सिंउ राइमइ, पुहुत सिद्धिशलाय, डूंगरस्वामी गाईंता, अफल्या फलइ तांह | "
अतः १६ वीं शताब्दी के डुंगरस्वामी से १७ वीं शताब्दी के डूंगर भिन्न व्यक्ति मालूम पड़ते हैं और प्रस्तुत रचना नेमिनाथ स्तवन डूंगर ( शिष्य क्षमासाधु ) की ही लगती है ।
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(शाह) ठाकुर - आपने सं० १६५२ में 'शान्तिनाथपुराण' की रचना की । हिन्दी भाषा में शान्तिनाथ पर यह पुराण संभवतः सबसे प्राचीन है । इसकी एकमात्र पाण्डुलिपि भट्टारकीय शास्त्रभंडार, अजमेर में संग्रहीत है; किन्तु इसका उद्धरण और विवरण उपलब्ध नहीं हो पाया है । श्री नाहटा ने इसे 'शान्तिनाथ चरित्र' कहा है और लेखक का नाम (शाह) ठाकुर बताया है । अतः उपरोक्त ठाकुर कृत शान्तिनाथ पुराण के कर्त्ता यही शाह ठाकुर हैं । सं० १६५२ में लिखी यह रचना पाँच संधियों में विभक्त है । यह विस्तृत रचना काव्यतत्वों से युक्त है । आपकी दूसरी रचना 'महापुराण कालिका' एक प्रबन्धकाव्य है जो २७ संधियों में विभक्त है । इससे पता चलता है कि ठाकुर या शाह ठाकुर के गुरु अजमेर शाखा के भट्टारक विशालकीर्ति थे । आप आमेर नरेश मानसिंह के समय वर्तमान थे । लुवा - इणिपुर निवासी खंडेलवाल जाति के वैश्य श्री खेता आपके पिता थे । शान्तिनाथचरित्र का उल्लेख हिन्दी साहित्य के वृहद् इतिहास में किया गया है किन्तु वहाँ भी इतनी ही सूचना है कि इसमें १६ वें तीर्थंकर शान्तिनाथ का चरित्र पाँच संधियों में वर्णित है । इस संबंध में सूचना के लिए प्रशस्ति संग्रह भाग २ पृ० १२३ भी देखा जा सकता है।
१. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ४९२ (प्रथम संस्करण )
२. डा० कस्तूर चन्द कासलीवाल - राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की ग्रन्थ सूची भाग ५ पृ० २५ और पृ० ३००
३. अगरचन्द नाहटा- - राजस्थान का जैन साहित्य पृ० २०९
४. हिन्दी साहित्य का बृहद् इतिहास भाग ३ पृ० २६८ प्रकाशक नागरी प्रचारिणी सभा, काशी
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