________________
२००
मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
रचना का प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है
सरसति सामिणि करउ पसाय, मझ एक रहा डे, खंभनयर जिनभवन अछइ तिहां चैत्य प्रवाडे |१|
इसमें खंभात स्थित पार्श्वनाथ चैत्य की वंदना है । इनकी दूसरी रचना 'होलिका चौपाई' से इनकी गुरु परंपरा का पता चलता है
यथा
अंचलगछ गुणइ भरपूर, गछनायक धर्ममूरति सूरि,
तसु आज्ञा गुण करीय अगाधि, वाचकमंडल श्री खिमासाध | तास सीस डूंगर मनिरली, भण्यु चरित्र गुरुमुखि संभली । जे नरनारि सुणस्य सदा, तिन्ह घरि बहुली हुइ संपदा । ८३ । होलिका चौपड़ ८३ कड़ी की रचना है। यह सिकन्दराबाद में सं० १६२९ चैत्र वदी २ को लिखी गई । इसमें होलिका की उत्पत्ति बताई गई है, यथा
इणि परि होली उतपति लही, चरित थिकी संखेपइ कही, अधिकउ ऊछउ कहिउ जेह, मिच्छादुक्कड़ मुझनइ तेह | सोलह सइ गुणतीसइ सार, चैत्रह वदि दुतिया बुधवार । नयर सिकंदराबाद मझारि, श्री नेमिश्वर नइ करीय जुहारि ।" आपकी एक अन्य रचना नेमिनाथस्तवन (७५ कड़ी) भी उपलब्ध है पर यह निश्चित नहीं है कि इसके लेखक अंचलगच्छीय क्षमासाधु के शिष्य डुंगर हैं या अन्य कोई दूसरे डूंगर । जैन गुर्जर कविओ के नवीन संस्करण के संपादक श्री कोठारी ने इस विषय में शंका तो उठाई है किन्तु समाधान का कोई संकेत नहीं दिया; अस्तु । इसकी कुछ पंक्तियाँ देखिये --
बालब्रह्मचारी सजाण, आसो भावस केवलनाण, वावीसमउ हउ जिणंद, प्रणमई आप अमूलइ कंद । श्री नेमि राणी रायमई, मन सुद्धिहि गुण गाऊं किमइ, अनदिन ध्याउं जिणवर चरण, भणइ डूंगर मंगलकरण 12 १६वीं शताब्दी में भी एक डूंगर कवि हो गये हैं जिन्होंने 'नेमि -
१. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ७३९ (प्रथम संस्करण) और भाग २ पृ० १५५ (द्वितीय संस्करण)
२. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० १५६ (द्वितीय संस्करण)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org