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________________ ज्ञानसुन्दर १९९ अंत में रचनाकाल इस प्रकार कवि ने बताया है औन्द्री निधि रसि ससिहर वरसइ, जेठ मासि वदि वीजानइ दिवसइ, अभयवधन सदगुरु पसायइ, सुणतां ज्ञानसुन्दर सुखथायइ ।' ज्ञानानंद-आपका इतिवृत्त अज्ञात है। इनके पदों में 'निधिचरित' का नाम जिस श्रद्धा से लिया गया है उमसे अनुमान होता है कि संभवतः निधिचरित आपके गुरु का नाम हो । पं० बेचरदास ने इन्हें १७वीं शताब्दी का कवि वताया है। डॉ० अम्बाशंकर नागर ने इनकी हिन्दी भाषा में गुजराती का प्रभाव अधिक देखकर इनके गुजराती होने का अनुमान किया है । संतों जैसी भाषा शैली में अध्यात्म एवं ज्ञानसम्बन्धी चर्चा ही इनके अधिकतर पदों का विषय है । इनका पद साहित्य भारतीय संतपरंपरा का प्रतीक है। इनकी रचना 'जोगीरासा' पद की कुछ पंक्तियाँ उदाहरणार्थ आगे प्रस्तुत हैं अवधू ! सूता क्या इस मठ में ? इस मठ का है कवन भरोसा पड़ जावै चटपट में । छिन में ताता छिन में शीतल रोग शोग बहु घट में ।' डुगर-आप अंचलगच्छीय क्षमासाधु के शिष्य थे। आपकी दो रचनाओं का निश्चित पता चलता है (१) खंभात चैत्य परिपाटी और (२) होलिका चौपाई। खंभात चैत्य परिपाटी १३ कड़ी की छोटी रचना है जो जैनयुग पुस्तक १ पृ० ४२८ पर प्रकाशित है। इसमें लेखक का नाम डुगर आया है, यथा थानकि बइठा जे भणइं मनि आणी ठाणि, पणम्यानइं फल पामिसि ओ मनि निश्चइ जाणि । मनवंछित फल पूरिस ओ थंभणपुर पासो, । डुगर भणइ भवीयण तणी, तिहां पूजइ आसो।। १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १०५८ (प्रथम संस्करण) और भाग ३ पृ० ३१० (द्वितीय संस्करण) २. डा. हरीश शुक्ल-गुर्जर जैन कविओ की हिन्दी कविता पृ० १२८-१२९ ३. वही ४. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ७३९ (प्रथम संस्करण); भाग २ पृ० १५५ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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