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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास (ब्रह्म) ज्ञानसागर- - आप दिगम्बर परम्परा के ब्रह्मचारी थे किन्तु आपके गुरु का नाम अज्ञात है । आपने अपनी रचना 'हनुमान चरित्र' (सं० १६३० आसो सुदी ५) में आत्मपरिचय इस प्रकार दिया है— १९८ हुंबड न्याति गुनिल साह अकाकुल भाण, अमरा दे उधर ऊपनउ श्री ज्ञानसागर ब्रह्म सुजाण । " अर्थात् आप हुंबड जातीय साह गुनिल और अमरादे के पुत्र थे I रचनाकाल - श्री ज्ञानसागर ब्रह्म ऊचरि हनुमंत गुणह अपार, कर जोड़ी कर वीनती स्वामी देज्यो गुण सार । संवत सोलत्रीसि वर्षे अश्वनी मास मझार, शुक्लपक्ष पंचमी दिन नगर पालु वासार । शीतलनाथ भवन रच्युं रास भलु मनोहार, श्री संघ गिरुउ गुणनिलु स्वामी शैल करयु जयजयकार | ज्ञानसोम - आपका भी जीवनपरिचय ज्ञात नही हो सका है । आपने सं० १६६९ से पूर्व भाषा गद्य में 'कोशशास्त्र' लिखा है जिसके अन्त में लिखा है- 'संवत् १६६९ वर्षे आषाढ़ शुदि ५ दिने लिखितानि इलाप्राकार मध्ये मुनि ज्ञानसोमेन । '२ ज्ञानसुन्दर - आप खरतरगच्छीय अभयवर्द्धन के शिष्य थे । आपने सं० १६९५ ज्येष्ठ कृष्ण २ को सूयगडांग सूत्र अध्ययन १६ मानी सञ्झाय अथवा जंबू पृच्छा सञ्झाय ( ४१ कड़ी ) की रचना की । इसका प्रारम्भ इन पंक्तियों से हुआ है सिद्ध सबेनइ करूं प्रणाम, धरमाचारिज लेई नाम, गुण गाइस मुनिवर तणां, जेहना गुण आगम छइ घणां । भगवंत केवलि नइ परिणाम, वर्द्धमान जिन भासइ आम, हिव पनरम अध्ययनानंतरइ, सोलमा अध्ययन कहइ इणि परइ । १. डा० कस्तूर चन्द कासलीवाल - राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की ग्रन्थ सूची भाग ५ पृ० ४१९ २. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ खण्ड २ पृ० १६०३ (प्रथम संस्करण) और भाग ३ पृ० १४२ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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