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उपोद्घात
मुगल साम्राज्य की स्थापना -बाबर के आक्रमण के समय देश की केन्द्रीय शासन सत्ता कमजोर पड़ गयी थी। लोदी सुल्तानों का आधिपत्य कोई नहीं मान रहा था। बंगाल में हुसैनी वंश का नुसरत शाह स्वतन्त्र शासक हो गया था। जौनपुर के शर्की नवाब भी प्रायः स्वतन्त्र ही थे। मालवा के शासक महमूद खिलजी से गुजरात के शासक बहादुरशाह की झड़पें आये दिन होती रहती थीं और सं० १५८८ में उसने मालवा को जीतकर उसे गुजरात में मिला लिया। इस प्रकार बाबर के समय बहादुर शाह मालवा और गुजरात के विस्तृत भूभाग का स्वतन्त्र स्वामी था। राजस्थान के हिन्दू राजाओं से भी इसकी बराबर ठनी रहती थी। राजस्थान में राणा संग्राम सिंह शक्तिशाली एवं बहादुर हिन्दू राजा थे। इन्होंने बाबर के विरुद्ध युद्ध किया किन्तु दुर्भाग्य से पराजित हो गए। सिन्ध और मुलतान के शासक भी स्वतन्त्र थे।
दक्षिण भारत में बहमनी और विजयनगर के प्रतिद्वन्द्वी राज्यों में प्रायः युद्ध होता रहता था। इस परिस्थिति का लाभ उठाकर बाबर ने हिन्दू-मुसलमान राजाओं और नवाबों को परास्त कर एक बड़ा साम्राज्य स्थापित कर लिया, किन्तु चार-पाँच वर्षों के भीतर ही मृत्यु हो जाने के कारण उसे शासन-व्यवस्था को सुदृढ़ करने का मौका नहीं मिल पाया। उसका बाइस वर्षीय (२२) पुत्र हमार्य आलसी और अफीम का व्यसनी था। उसकी काहिली का लाभ उठाकर शेरखाँ नामक एक अफगान सरदार ने उससे साम्राज्य छीन लिया और शेरशाह सूरी के नाम से स्वयं भारत का सम्राट् बन बैठा। वह बीर ही नहीं योग्य भी था। उसकी शासन व्यवस्था भी दुरुस्त थी। इसने सं० १६०२ तक बड़ी योग्यता पूर्वक दिल्ली आगरा पर शासन किया पर इसके उत्तराधिकारी बड़े अयोग्य निकले और शेरशाह की मृत्यु से केवल ८ वर्ष पश्चात् पुनः हुमायूँ ने सं० १६११ में सिकन्दर सूर को परास्त कर अपना खोया हुआ साम्राज्य वापस ले लिया।
अकबर का शैशव-जब हमायू शेरशाह से पराजित होकर अपने भाइयों और अन्य सम्बन्धियों के यहाँ सहायता के लिए भागदौड़ १. बाबर ने कहा था कि भारतवासी मरना जानते हैं लड़ना नहीं; यह
उक्ति तत्कालीन व्यक्तिगत शूरवीर किन्तु एकता एवं संगठन शून्य राजपूतों पर सटीक बैठती है।
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