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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
जिन चउवीसे नमी, सह गुरु पय प्रणमेवि,
सीलतणां गुण गायस्यु सानिधि करि श्रुति देवि । रचनाकाल-सोलह सइ पइसठि समइ, दसमी फागुण सुदि सार,
सरखा पट्टण मई कीयउं, ओ सम्बन्ध उदार रे । गुरु परम्परा- श्री साधुकीरति पाठकवरु खरतरगण नभचंद,
महिमसुन्दर गणि चिरजयु तसु शिष्य कहइ आणंदो रे। इम जाणी सील जे धारइं शिव ते पामइ अपार,
ज्ञानमेरु मुनि इम भणइ, सुगुरु पसाय जयकारो रे। यह रचना साह थिरपाल के आग्रह पर लिखी गई। इसमें शेठशेठानी का आदर्शशील दर्शाया गया है।
गुणावली चौपाई- इसका पूरा नाम है, गुणकरंड गुणावली रास अथवा चौपाई। यह सं० १६७६ आसो शुक्ल १३ को फत्तेहपुर में लिखी गई। इसका प्रारम्भ देखिये
प्रणमु चोवीसे जिन पाय, वाली भावि वंदु गुरुपाय,
पुण्य तणा फल कहिसुहेव, सानिधि करयो श्री श्रुतदेव । रचनाकाल-संवत सोल छिहत्तरइ, प्रथम मेहइ आसो मासि,
फत्तेपुर तेरस दिनइ संघ अनुमति उल्हासि ।' इसमें खरतरगच्छीय आचार्य जिनराजसूरि, जिनभद्रसूरि और साधुकीति आदि का वंदन किया गया है । इसकी अन्तिम कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं
श्री साधुकीरति पाठकवरु नाण चरण भण्डार, श्री महिमसुन्दर वाचकवरु तासु विनेय गुणधार । तस पयपंकज सेवक, ज्ञानमेरु कहि ओम, ढाल धन्यासी सोलमी, सुणता होवइ सर्वषेम। षंड त्रीजइ यत गुण कह्या, सुणी जे भावना भावंति,
रिधि वृद्धि संपद सवे, मन वंछित आवंति ।। कुगुरु छत्तीसी (गा० ३६) यह जैनयुग वर्ष ५, अंक ४-५ पृ० १८०
१. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ४९५-९६, भाग ३ पृ० ९७९-८० (प्रथम
संस्करण) और भाग ३ पृ० ९४-९६ (द्वितीय संस्करण) २. वही
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