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________________ ज्ञानमूर्ति परीषह बावीस वर्णव भाषित जिम भगवंत, रास रचु रलियामणी सांभलयो सहु संत । जैसा पहले कहा जा चुका है आप अच्छे गद्य लेखक भी थे । यद्यपि आपकी गद्य रचना 'संग्रहणी बालावबोध' का उद्धरण प्राप्त नहीं हो सका है फिर भी यह प्रमाणित तो होता ही है कि आप गद्य लेखक भी थे । यह रचना भी सं० १७२५ की है अर्थात् ये दोनों कृतियाँ अठारहवीं शताब्दी (विक्रमी) की हैं । इस रचना को जैन गुर्जर कविओ के प्रथम संस्करण में श्री देसाई ने ज्ञानमूर्ति की अन्य रचनाओं से अलग दिखाया था किन्तु द्वितीय संस्करण के संपादक ने इसे निश्चित रूप से ज्ञानमूर्ति की ही रचना बताया है और उन्हीं के साथ इसका भी विवरण दिया है । आप १७ वीं एवं १८ वीं शताब्दी की संधिबेला के श्रेष्ठ कवि और साहित्यकार हैं । आपकी रचनाओं में काव्य के विविध अंग- उपांगों, रस, छंद, अलंकार के साथ भाषा का शिष्ट प्रयोग उल्लेखनीय है । इन्हें भाषा और काव्य शास्त्र का उत्तम ज्ञान प्रतीत होता है जिसका इन्होंने अपनी रचनाओं में उचित प्रयोग किया है । कवि और साहित्यकार के साथ वे एक श्रेष्ठ संत और शास्त्रमर्मज्ञ भी थे जैसा उनकी निम्न पंक्तियों से व्यक्त होता है भजइ गणइ ये (जे) सांभलइ, साध तणा गुण भावन बार भी परि भांवइ, उपशम संवर समता रस मां मन रहई, शत्रु मित्र सम जाणइ रे, वाकं परुपई न पारको, कर्त्ता कर्म्म वषाणइ रे । नव विधि चउद रयण घरि राजइ, सुरवर सेवा सारई रे, मारग साध तणो अ सुन्दर, भव सागर मां तारइ रे । ' १९५ गावइ रे, पावइ रे । ज्ञानमेरु - खरतरगच्छ के साधुकीर्ति के शिष्य महिमसुन्दर आपके गुरु थे । विजयशेठ -विजयाप्रबन्ध, गुणावली चौपाई, कुगुरुछत्तीसी और कालकाचार्य कथा नामक आपकी रचनायें उपलब्ध हैं । 'विजय - शेठ विजया प्रबन्ध' (३७ कड़ी) सं० १६६५ फाल्गुन शुक्ल १० को सरसा, पाटण में लिखी गई । इसका प्रारम्भ इन पंक्तियों से हुआ है Jain Education International १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १०४३, भाग ३ खण्ड २ पृ० १२३४ २. श्री अगरचन्द नाहटा - परम्परा पृ० ७४ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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