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________________ १९२ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास आदि-श्री गोइम ने चरणे नमु, ध्यान धरी हइडर समु, वीनवं टाली मन सुं आमलड ओ। जिनवाणी जे सरस्वती, मया करउ मझनी अती, सरस्वती वचन अक मझ सांभलु । ग्रंथी मोटा माहिथी प्रबंध कीधु तेहथी जसोधर वर्णनसार, हंसाउथा अक दया था अक आपक पुन्य उदार हो। रचनाकाल-संवत सोल वीसइ रुयडउ कारतिग सुदि रवीवार, अष्टमी तथि बउदरि नीपनु चरीत्र मनोहर सार हो, पाप दूरि पडइ नवनिधि सांपडइ, आवडइ जेहनइ रास, लूंका गछि हूंतउ रषि नानजी उत्तम, तेह सांणधि (शिष्य) कहइ ज्ञानदास हो' रास की भाषा अटपटी, छंद गतिहीन, मात्रा भंग आदि के कारण रचना में प्रवाह और सरसता नहीं है। ये तिथि को 'तथि' और ऋषि को ‘रषि' लिखते हैं। श्री देसाई ने इन्हें 'स्त्रीचरित्र रास' का भी लेखक बताते हुए इन्हें और ज्ञान को एक ही व्यक्ति माना है किन्तु 'यशोधर रास' में ऐसा कोई अन्तःसाक्ष्य नहीं मिला जिससे श्री देसाई के कथन की पुष्टि होती हो। छंदों का अनगढ़पन और भाषा का अटपटापन अवश्य दोनों रचनाओं में एक समान मिलता है। इस आधार पर ज्ञान और ज्ञानदास के एक होने के अनुमान को अवश्य कुछ बल मिलता है । ज्ञानमूति --आप अंचलगच्छीय आचार्य धर्ममूर्ति की परम्परा में विमलमूर्ति के प्रशिष्य एवं गुणमूर्ति के शिष्य थे। आप उत्तम कवि और अच्छे गद्यकार थे । आपने रूपसेनराजर्षि चौपाई, प्रियंकर चौपाई, बावीस परीषह चौपाई आदि कई उत्तम पद्य रचनाओं के अलावा संग्रहणी बालावबोध नामक गद्य ग्रन्थ भी लिखा है इनकी कृतियों का संक्षिप्त विवरण एवं उद्धरण आगे प्रस्तुत किया जा रहा है। ___ रूपसेन राजर्षि चौपाई अथवा रास (६ खंड, ५८ ढाल, १२९६ कड़ी ) सं० १६९४ आसो शुक्ल ५ को पूर्ण हुई। इसके छह खण्डों में भिन्न-भिन्न देशियों का प्रयोग किया गया है। इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ इस प्रकार हैं -- १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ९५८-५९ (प्रथम संस्करण) और भाग २ पृ० १३५-१३६ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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