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ज्ञानचन्द
१९१ रायपसेणी बीओ उपांग थी उद्धरी ओ अधिकार, परदेसीय परबोध मइ रच्यो रंग सु प्रश्नोत्तर विस्तार ।
X धन्य शासन महावीर नो सेवीये जिहां रह्या अधिकार, कहे ज्ञानचंद इम सद्गुरु सेवता पामीये शिवसुखसार ।' यह रचना 'प्राचीन जैन रास संग्रह' (प्रकाशक जीवणलाल संघवी) में प्रकाशित है।
चित्रसंभूति रास, जिनपालित जिनरक्षित रास और शीलप्रकाश रास का विवरण उद्धरण नहीं मिल पाया। इनमें से कितनी कृतियां प्रस्तुत ज्ञानचंद शिष्य सुमतिसागर की हैं और कितनी-अन्य ज्ञानचंद शिष्य गुणसागर की हैं यह भी श्री मो० द० देसाई के विवरण से स्पष्ट नहीं हो पाता। उन्होंने स्वयं ऋषिदत्ता चौपाई के कर्ता कवि ज्ञानचंद को गुणसागर का शिष्य कहा है और उन्होंने कवि की जो गुरुपरंपरा खरतरगच्छ जिनचंद्रसूरि>पुण्यप्रधान>सुमतिसागर की बताई है वह 'परदेशी राजा रास' में कवि द्वारा लिखित गुरु परंपरा से मेल नहीं खाती। इसलिए लगता है कि ऋषिदत्ता चौपाई
और केशी प्रदेशी राजानो रास नामक दो कृतियां तो ज्ञानचंद की हैं किन्तु उनकी गुरुपरम्परा ठीक नहीं है। शेष तीन के सम्बन्ध में अधिक शोध की अपेक्षा है।
ज्ञानतिलक-खरतरगच्छीय पुण्यसागर के प्रशिष्य एवं पद्मराज के शिष्य थे। आपने 'गौतम कुलक वृत्ति' नामक टीका लिखी है। इसके अलावा 'नेमिधमाल', नेमिनाथ गीत, शांतिस्तवन और नंदीसेन फाग'२ नामक मरुगुर्जर की रचनायें भी की हैं किन्तु इन रचनाओं का नामोल्लेख मिलता है। इनके विवरण एवं उद्धरण नहीं प्राप्त हो सके हैं।
ज्ञानदास -आप लोकागच्छीय नान जी के शिष्य थे। आपने सं० १६२३ कार्तिक शुक्ल ८, रविवार को बडोदरा में 'यशोधर रास' रचा। १. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ५८७-८८ भाग ३ पृ० १०८५-८८ (प्रथम
संस्करण) और भाग ३ पृ० ३३४-३३५ (द्वितीय संस्करण) २. श्री अगरचन्द नाहटा-परम्परा पृ० ७२
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