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________________ १९० मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास 'यशोधर चरित्र' नामक एक काव्य की रचना सं० १६५९ में की जिसकी प्रतिलिपि आमेर के शास्त्रभंडार में संग्रहीत है। इस कृति के अंत में यह विवरण दिया गया है- "इति श्री यशोधर महाराज चरित्रे भट्टारक श्री वादिभूषण शिष्याचार्य श्री ज्ञानकीर्ति विरचिते राजाधिराज महाराज मानसिंह प्रधान साह श्री नानू नामांकिते भट्टारक श्री अभयरुच्यादि दीक्षाग्रहण स्वर्गादि प्राप्त वर्णनो नाम नवमः सर्गः।" ____ ज्ञानकुशल-ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में जिनरंगसूरि गीतानि शीर्षक के अन्तर्गत दूसरा गीत ज्ञानकुशलकृत है जिसमें कवि ने जिनरंगसूरि की प्रशस्ति में उन्हें खरतरगच्छ की रंगविजय शाखा का युवराज बताया है, यथा “खरतरगच्छ युवराजिपद, थ्यापउ श्री जिनराजवरे।" इस शाखा की गद्दी लखनऊ में है। यह रचना १७ वीं शताब्दी की है। इसके साथ प्रथम गीत राजहंस गणि का और उसके पश्चात् तृतीय गीत कमलरत्न का है। ये सभी कवि १७वीं शताब्दी के हैं । इनकी चर्चा यथास्थान की गई है। ज्ञानचन्द-खरतरगच्छीय जिनचन्द्रसूरि की परम्परा में पुण्य प्रधान >सुमतिसागर के शिष्य थे। इन्होंने ऋषिदत्ता चौपइ, प्रदेशी चौपइ, चित्तसंभूतिरास, जिनपालित जिनरक्षित रास और चौबीसी की रचना की है। रचनाओं का संक्षिप्त विवरण एवं कुछ उद्धरण आगे दिए जा रहे हैं ऋषिदत्ता चौपइ-सं० १६७४ से १७२० के बीच यह किसी समय लिखी गई होगी क्योंकि रचना में जिनसागरसूरि राज्ये लिखा है। जिनसागर सूरि का यही समय है। यह रचना मुलतान में की गई। केसी प्रदेशी राजा रास-( ४१ ढाल, सं० १६९८ से पूर्व ) आदि प्रणमी श्री अरिहंत पय, समरी सिद्ध अनंत, आचारिज उवझाय धवलि, साधु सहू भगवंत । १. डा० कस्तूर चन्द कासलीवाल-राजस्थान के जैन संत पृ० २११ २. ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह-'जिनरंगसूरि गीतानि' ३. श्री अगरचन्द नाहटा-परम्परा पृ० ८२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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