________________
जैनंद
१८९.
कवि ने जसकीर्ति, सुखेमकीर्ति त्रिभुवनकीर्ति का सादर स्मरणःकिया है । आगे अपनी लघुता प्रकट करता हुआ कबि लिखता हैछंद भेद पद भेद हौं तो कछु जानें नाहि, ताकौ कियो न खेद, कथा भई निज भक्तिवश ।
-
दोहे, सोरठों की भाषा प्रवाहपूर्ण एवं प्रसाद गुण संपन्न हिन्दी है । आगरा का वर्णन देखिये- - अगम आगरो पवरुपुर उठकोह प्रसाद, तरे तरंगि नदी बहे नीर अमी सम स्वाद धन कन पूरन तुंग अवास, सबहि निःसंक धर्म के दास, छत्राधीस हुमायुवंश अकबरनंदन वैर विध्वंस ।
X
X
x
नाम काम गुन आपु वियोग, रचिपचि आपु विधाता योग । जहाँगीर उपमा दीजै काहि, श्री सुलतान नू दीसे साहि, कोस देस मंत्री अति गूढ़ छत्र चमर सिंघासनरूढ़ | रचनाकाल - करै असीस प्रजा सब ताहि, वरनौं कहा इति मति आहि संवत सोलह से उपरंत त्रेषठि जानहु वरस महंत ।
"
सोरठा - माघ उजारी पाख, गुरु वासरि दिन पंचमी, बंध चौपइ भाषा कही सत्य सारुरती दोहा - कथा सुदर्शन सेठ की पढे सुनै जो कोय, पहिले पावै देवपद पाछे सिवपुर होय ।
ज्ञान – आपने सं० १६७० से पूर्व रत्नागरपुर में 'स्त्री चरित्र रास की रचना की । इसकी अंतिम पंक्तियाँ इस प्रकार हैं
नवरइ एक नाटिक रचिउं रत्नागरपुर मांहि, पंति करीनि राषज्यो आप्यु मनि उच्छाहि । न्यान भणइ हो भाइयों स्त्री चरित्र अपार, जे छयल अहने छेतरइ ते नर धन्य अवतार । '
-
ज्ञानकीति -आप भट्टारक वादिभूषण के शिष्य थे । आमेर के राजा मानसिंह प्रथम के मंत्री नानू गोधा की प्रार्थना पर इन्होंने
१.
जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ४८० (प्रथम संस्करण) और वही, भाग २ पृ० १३६ - १३७ (द्वितीय संस्करण )
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org