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________________ . १८८ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास यह प्रबन्ध सोहामणो जी, कहे श्री जिनोदय सूरि, भणे गुणे श्रवणे सुणे जी, तिण घरे आनंद पूर । चार खंड चोपाई करी जी, श्री संघ सुणवा काज, पुण्ये शिवसुख पामिया जी, हंस अने वछराज । -यह रचना भीमशी माणक द्वारा प्रकाशित है । पहली कृति 'चंपकचरित्र' में गुरु का नाम जिनतिलक दिया है यथा 'तसु पाढे महिमानिलो जी श्री जिनतिलक सुरिंद', किन्तु दूसरी रचना हंसराज चौपइ में गुरु का नाम जयतिलक दिया है 'तस पाटे महिमा निलो जी, श्री जयतिलक सूरिराय । किन्तु इसके कारण दो जिनोदय सूरियों की कल्पना करना उचित नहीं लगता । जैनंद - आप दिग० यशः कीर्ति के शिष्य थे । आपने भ० यशःकीर्ति, क्षेमकीर्ति तथा त्रिभुवनकीर्ति का अपनी रचना में उल्लेख किया है । आपने नयनंदि के अपभ्रंश भाषा की रचना पर आधारित 'सुदर्शन चरित्र 'भाषा' हिन्दी भाषा में सं० १६६३ में आगरा में लिखा । इस रचना में अकबर तथा जहाँगीर के शासन का उल्लेख किया गया है । रचना -बड़ी नहीं है किन्तु भाषा शैली एवं वर्णन की दृष्टि से सुन्दर है । इसकी कुल छन्द संख्या २०६ है और इसमें मुख्य रूप से चौपाई, दोहा तथा सोरठा छंदों का प्रयोग किया गया है । इसका प्रारम्भ - प्रथम सुमिरि जिनराय, महीतल सुरासुर नाग खग, भव भव पातिक जाय, सिद्ध सुमति साहस बढै । दोहा - इन्द्र चन्द्र और चक्कवै हरि हलधर फनिनाह, ऊ पार न लहि सकैं जिन गुण अगम अथाह । चौ० -- सुमरौं सारद जिनवर बानि, करौ प्रणाम जोरि करि पानि, मूरख सुमरे पंडित होय, पाप पंक नहि धात सोय । इसमें सात चौपाइयों तक सरस्वती की शोभा का वर्णन किया - गया है, यथा उज्जलहार अनूपम हिये, विधना कहै तिसोई किये, पग नूपुर उज्जल तनचीर, कनक कांतिमय दिपै शरीर ।" १. कस्तूर चन्द कासलीवाल- - राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की ग्रन्थ सूची पाँचवा भाग पृ० ४१६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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