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जिनोदय सूरि
१८७. अलावा जिनतिलक सूरि स्तुति, नववाडगीत, चौबीस जिनस्तवन, शान्ति स्तवन आदि कृतियाँ भी प्राप्त हैं।'
चंपकचरित्र चौपाई ( अनुकंपा दाने) २७ ढाल में लिखित (सं० १६६९ कार्तिक शुदी १३, वीरपुर) रचना है। इसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है
चउवीसे जिनवर वली, विहरमान जिन बीस, गणधरादि मुनि सकल के चरन नम निसदीस ।२ चरित्र चंपकसेन नो कहूं कथा अनुसार,
सुनो चतुर चित दृढ़करी विकथा नींद निवार । अन्त-दानविषे चंपक तणो जी सुगुरु बचन थी अह,
अह प्रबंध ज शास्त्र थीज रचीओ आनंदेह । रचनाकाल-संवत सोल उगुणंतरे जी काती सुद विचार,
तेरह दिन से संथुण्यो जी बीरपुर मझार । यह रचना दान के माहात्म्य पर चंपकसेन के उदाहरण से रची गई है। हंसराज वच्छराज रास ९१९ कड़ी की वृहद् रचना चार खण्डों में विभक्त है। यह सं० १६८० में विजयादशमी, रविवार को लिखी गई । इसका आदि देखिये
आदीश्वर आदे करी चउवीसे जिणचंद,
सरसती मन समरं सदा श्रीजयतिलक सूरींद । यह कथा पुण्य के महत्व पर लिखी गई, यथा
पुण्य ऊपर सुणज्यो कथा, सुणतां अचरिज थाय ।
हंसराज वत्सराज नृप, हुवा पुण्य पसाय ।' अन्त में भावहर्ष से जयतिलक सूरि तक के गुरुओं का सादर स्मरण करने के पश्चात् रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है
संवत सोल अंसीओ समे जी, आसो सुदि रविवार, विजयदसमी अ संथण्यो जी श्री संघ ने सुखकार ।
१. श्री अगरचन्द नाहटा-परम्परा पृ० ८९ २. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १४८ (द्वितीय संस्करण) ३. वही, पृ० १४९
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