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________________ १८५ जिनसिंह सूरि नाम सिद्धसेन रखा। आपने हर्षनंदन से विद्याभ्यास किया। सम्राट जहाँगीर से मिलने जाते समय मेड़ते में अकस्मात् जिनसिंह सूरि का देहावसान हो गया, तब सं० १६७४ फाल्गुन में इन्हें आचार्य पद प्राप्त हुआ और नाम जिनसागर पड़ा। सुमतिवल्लभ ने 'जिनसागर सूरि निर्वाण रास' लिखा है। हर्षनन्दन कृत जिनसागर सूरि अवदात गीत, जिनसागर सूरि निर्वाण रास, जिनसागर सूरि अष्टकम् आदि रचनायें ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में प्रकाशित हैं जिनसे इनके व्यक्तित्व की लोकप्रियता एवं गरिमा का अनुमान होता है और यह निश्चित पता लगता है कि ये एक बड़े आचार्य एवं तपस्वी महापुरुष थे किन्तु उतने बड़े रचनाकार नहीं थे। जिनसिंह सूरि-आप युगप्रधान जिनचन्द्र सूरि के पट्टधर शिष्य थे। आपकी एक ही रचना 'बावनी' का उल्लेख मिलता है। आप जब युग प्रधान के साथ सम्राट् से मिलने लाहौर गये थे तभी आचार्य पद प्रदान किया गया था। आपके शिष्यों की अच्छी संख्या थी और उनमें से कई सुकवि एवं साहित्यकार थे। ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में समयसुन्दर, राजसमुद्र, हर्षनन्दन आदि के कई गीत जिनसिंह सूरि गीतानि शीर्षक के अन्तर्गत संग्रहीत हैं जिनसे इनके व्यक्तित्व पर प्रकाश पड़ता है। आप महान् विद्वान् और प्रभावशाली आचार्य थे। जिनराज सूरि इनके पट्टधर शिष्य थे। इनका सम्राट् जहाँगीर से भी अच्छा सम्बन्ध था। 'बावनी' के अलावा मरुगुर्जर में लिखित किसी अन्य रचना का अब तक पता नहीं चला है। सं० १६७४ में इनका स्वर्गवास हुआ। जिनेश्वर सूरि-आप खरतरगच्छ के आचार्य जिनमेरु>जिनगुणप्रभसूरि के पट्टधर शिष्य थे। आपने अपने गुरु की स्तुति में जिनगुण प्रभुसूरिप्रबन्ध अथवा धवल ( ६१ गाथा ) सं० १६५५ के पश्चात् लिखा । २ इसमें कवि ने अपने गुरु का ऐतिहासिक वृत्तान्त लिखा है। इसके प्रारम्भ की पंक्तियाँ देखिये १. श्री अगरचन्द नाहटा-परम्परा पृ० ८३ २. वही पृ० ८७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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