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________________ १८४ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सार्दूल रिसर्च इन्स्टीट्यूट बीकानेर से श्री नाहटा द्वारा संपादित श्री जिनराजसूरि की प्रायः समस्त रचनाओं का संग्रह 'जिनराजकृति कुसुमाञ्जलि' के नाम से प्रकाशित है । डॉ. हरीश ने भी इनका विवरण अपनी पुस्तक में उत्तम ढंग से दिया है । शालिभद्र चतुष्पदिका आनंदकाव्यमहोदधि मौक्तिक १ में मतिसार के नाम से प्रकाशित की गई है। बीसी और चौबीसी : 'चौबीसी वीशी संग्रह' में प्रकाशित हैं। इस प्रकार इनकी प्रायः सभी रचनायें प्रकाशित हैं और इनको आधार बनाकर पर्याप्त रचनायें शिष्यों तथा भक्तों ने लिखी हैं जिससे इनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर पूरा प्रकाश पड़ चुका है। इनकी एक रचना राजसमुद्र नाम से भी ऐतिहासिक जैन काव्यसंग्रह में प्रकाशित है उसका विवरण राजसमुद्र के अन्तर्गत देखिये। जिनसागर सूरि-आप खरतरगच्छीय जिनसिंहसूरि के शिष्य थे। सं० १६७४ में आपको सूरिपद प्राप्त हआ। सं० १६८१ में आप ने आचार्य शाखा का प्रवर्तन किया। सं० १७२० में आपका स्वर्गवास हआ। दो रचनायें 'विहरमान जिनगीत' अथवा 'बीसी' और गौड़ीस्तवन (सं० १६८२) आपने लिखी है।' बीसी की दो पंक्तियाँ उदाहरणार्थ प्रस्तुत हैं सुविहित खरतर गच्छपती ओ, युगवर जिनसिंघ सूरि, तासु सीस गुण संस्तवे, श्री जिनसागर सूरि । जयकीर्ति ने जिनसागर सूरि गीत लिखा है और धर्मकीर्ति ने जिनसागरसरिरास। इन रचनाओं में इनके व्यक्तित्व विशेषतया सं० १६८६ की उन घटनाओं का जिनसे आचार्य शाखा अलग हुई, वर्णन मिलता है । श्री अगरचन्द नाहटा ने भट्टारकीय और आचार्य शाखा का अलगाव सं० १६८६ में लिखा है किन्तु इन रचनाओं से यह समय सं० १६८१ प्रतीत होता है। आप बीकानेर निवासी बोथरागोत्रीय शाह वच्छा की पत्नी मृगादे की कुक्षि से सं० १६५२ में पै. हुए थे। इनके बचपन का नाम चोला था किन्तु लोग प्यार से सामल कहते थे। सं० १६६१ में जिनसिंह सूरि के उपदेश से प्रभावित होकर इन्होंने दीक्षा ली और युगप्रधान जिनचन्द्र ने राजनगर में बड़ी दीक्षा देकर १. श्री अगरचन्द नाहटा-परम्परा पृ० ८९ २. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ. ९७१ (प्रथम संस्करण) और भाग ३ पृ० १८७ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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