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(पाण्डे) जिनदास
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की जयमाल, मालीरास और स्फुटपद आदि प्राप्त हैं । जंबुस्वामी चरित्र में जैनधर्म के अन्तिम केवली जंबूस्वामी का चरित्र वर्णित है । इसकी कुछ और पंक्तियाँ देखिए
मानस्तम्भ पास जब गयउ, गयो मान कोमल मन भयउ, तीन प्रदक्षिना दीनी राइ, राजा हरष्यै अंगि न माइ । परमेसुर स्तुति राजा करै, बारबार भगति उच्चरै । इन पंक्तियों में उस समय का प्रसंग है जब सम्राट् श्रेणिक महावीर भगवान के समवशरण में गया और मानस्तम्भ के समीप जाते ही उसका मन कोमल हो गया ।
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जोगीरास या योगीरास — इसकी भाषा शैली सुन्दर है ।" यह योगभक्ति का काव्य है । उदाहरण
ना हौं राचौणा हौं विरचौं, णा कछु मंतिणा आणौ, जीव सर्व कोइ केवलज्ञानी आप्यु समाणा जाणउ, मोह महागिरि षौदि बहाऊ, इन्द्रिय थलि न राषउं, कंदर्प सर्प निदप्प करे बिनु, विषया विषय विष ताषउं । जखड़ी - यह रचना 'बृहज्जिनवाणी संग्रह' में पृ० ६०९ से ६११ पर प्रकाशित है । इसमें कुल सात पद्य हैं । यह सं० १६७९ में लिखी गई। इसका चौथा पद्य उद्धृत कर रहा हूँ
दंसण गुण विन जात जिके दिन सो दिन धिकधिक जानि, धन्य सोहि सोहि पर भिन्नो, भ्रांति न मन मांहि आनि । इनकी दो लावणियाँ भी उपलब्ध हैं उनमें से एक की चार पंक्तियाँ प्रस्तुत है
मैं भवभव मांही देव जिनेश्वर पाऊँ,
इन चौरासी कर मांहि फेरि नहि आऊ । जै जै जैनधरम जिनदास लावणी गाई, तेरी अचल अखंडित ज्योति सदा सुहाई ।
चेतनगीत पाँच पद्यों की लघु रचना है, कवि चेतन को सम्बोधित करता हुआ कहता है
इमि प्रकट परिषि विहरषु, मानिबी बिलविउ जिगहि जेतनी, तिम परम पंडित दिव्य दिष्टिहिं, कहौं तुम स्यों चेतनौ ।
१. डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल – प्रशस्ति संग्रह पृ० २० २. डा० प्रेमसागर जैन — जैन भक्ति काव्य पृ० १२७
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