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- गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
लूणिया गोत्रे दीपतो, सकलपि जिणेसरो सूरो रे, चारित्रपात्र चूड़ामणि, प्रतप्यो जे पुण्य पंडूरो रे । तास सीस इणि पर कहे, जिणचंद वचन परिमाणे रे, अंग छताले सीस में अध्ययने तास बषाणे रे । '
इसमें लेखक का नाम जिनचंद्र और उनके गुरु का नाम लूणिया गोत्रीय जिनेश्वर सूरि स्पष्ट बताया गया है; अतः यह रचना इन्हीं की है । गुरु परम्परा के बाद कवि ने रचना का नाम इस प्रकार बताया हैपांडव ने द्रुपदी तोइ, चरिय रच्यो सुखकारी रे, श्री पार्श्वनाथ सुपसाइले, श्री जैसलमेर मझारी रे । इनकी अन्य रचनाओं के उद्धरण नहीं उपलब्ध हो सके ।
(पाण्डे) जिनदास - आप शान्तिदास के शिष्य थे । आपने सं० १६४२ में अपने गृहनगर मथुरा में 'जंबूस्वामी चरित्र' की रचना की । कवि ने इसमें अपना जो परिचय दिया है उसके अनुसार ये आगरावासी शान्तिदास के शिष्य और पुत्र भी थे । अकबर के मंत्री टोडरमल के ये आश्रित थे और टोडरमल के पुत्र दीपाशाह के निमित्त इन्होंने 'जंबूस्वामी चरित्र' की रचना की थी । लगता है कि शान्तिदास ने बाद में ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर लिया था, यथाब्रह्मचार भयो सन्तीदास, ताके सुत पांडे जिनदास, तिन या कथा करी मनलाय, पुण्य हेत मित तत वरताहि ।
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इसका रचनाकाल अकबर के शासन में पड़ता है, कवि ने लिखा है, यथा
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अकबर पातस्याह का राज, कीनी कथा धर्म के काज । जंबूस्वामी चरित्र का रचनाकाल
संवत सोल से जे भये, बयालीस तां ऊपर गये,
भादौ वदि पंचमी गुरुवार, ता दिन कथा कीयो ऊचार । मंगलाचरण - प्रथम पंच परमेष्ठि नमूं दूजौ सारद को निऊ, गणधर गुरु चरणन अनुसरों, होय सिध कवित ऊचरु । इनकी अन्य रचनाओं में योगीरासा, जखडी, चेतनगीत, मुनिश्वरों
१. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १०८९-९० (प्रथम संस्करण ) २. श्री अगरचन्द नाहटा - परम्परा पृ० ८७
३. डा. प्रेमसागर जैन - हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि, पृ० १२५-१२८ ४. डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल - प्रशस्ति संग्रह पृ० २१३
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