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________________ १७६ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास किया गया था। बादशाह ने राजाज्ञा निकाल कर जीवहिंसा, जजियाकर आदि में रियायतों की घोषणा की। जिनचन्द्रसूरि का प्रभाव केवल अकबर पर ही नहीं था, अपितु सं० १६६९ में जब उसके पुत्र जहाँगीर ने सभी साधुओं को नगर निष्कासन का आदेश दिया था तब सूरि जी ने पुनः पाटण से आगरा जाकर जहाँगीर को समझा-बुझा कर वह आदेश रद्द करवाया था। खरतरगच्छीय जिनमाणिक्यसूरि के आप शिष्य थे। इनका जन्म सं० १५९४ में वडली निवासी रीहड गोत्रीय श्रीवंत की पत्नी सिरिया देवी की कुक्षि से हुआ था। इनके बचपन का नाम सुलतान था। इन्होंने आगे चलकर धर्म के क्षेत्र में शीर्षस्थान पर पहुँचकर अपने बचपन के नाम को सार्थक सिद्ध किया और जब वे अकबर से मिले तो मानो वह एक सुलतान का दूसरे सुलतान से मिलन था। वे सं० १६०४ में दीक्षित हुए और दीक्षा नाम सुमतिधीर पड़ा। सं० १६१२ में इन्हें आचार्य पद जैसलमेर में प्राप्त हुआ और सं० १६४८ में सम्राट अकबर ने लाहौर में इन्हें युगप्रदान पद से विभूषित किया। आपने अनेक यात्रासंघों का संचालन किया; मंदिर बनवाये, प्रतिमायें प्रतिष्ठित कराई और धर्म का प्रभाव विस्तृत किया। आपका प्रभाव क्षेत्र राजस्थान, गुजरात, पंजाब और उत्तरप्रदेश तक फैला था । अन्त में सं० १६७० में विडाला में ही आपका स्वर्गवास हुआ। साहित्य रचना-आप संस्कृत, प्राकृत और राजस्थानी तथा हिन्दी आदि कई भाषाओं के विद्वान् थे। आपने सं० १६१७ में ही पौषध विधि प्रकरण पर संस्कृत में टीका लिखी थी। मरुगूर्जर में आपकी कई रचनायें कही जाती हैं जिनमें बारभावना अधिकार, शाम्बप्रद्युम्न चौपइ सं० १६२०, बारव्रत नो रास सं० १६३३, द्रौपदीरास आदि उल्लेखनीय है। । श्री अगरचन्द नाहटा 'द्रौपदीरास' को वेगड शाखा के जिनचन्द्रसूरि की रचना मानते हैं। लगता है कि 'जिनबिंबस्थापनास्तवन' भी दूसरे जिनचंद की रचना है जो जिनलाभसूरि के शिष्य थे। बारव्रत१. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० २२९ (प्रथम संस्करण) भाग २ पृ० ११९ (द्वितीय संस्करण) २. श्री अगरचंद नाहटा-युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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