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जयसार - जयसोम आदि-चउवीसे जिणवर नमी, ध्याइ गोयम सामि,
__सहगुरु शासन देवता, नव निधि हुवइ जसु नामि । रचनाकाल
सोलहसइ सइताल वइसाख सदि दिन त्रीज,
इम ढाल वंधइ गुथी आ श्रावक व्रतरे समकित बीज ।' परिग्रह परिमाण विरति रास सं० १६५० कार्तिक शुक्ल ३ अन्त--जिनचंद सूरि गुरु श्री मुखइ, श्राविका रेखा सार,
आदरइ वारह व्रत ईसा, शुभदिवस रे मन हरष अपार । सोलह सइ पचासमइ काती सुदि दिन तीज,
इम ढालवंध गूंथीआ श्रावक व्रत रे जिह समकित बीज । वयर (वज्र) स्वामी चौपइ सं० १६५९ श्रावण नेमिजन्मदिन,. जोधपुर। आदि-वर्धमान जिनवर वरदाइ मनमहि समरिय सारदमाइ,
वयरस्वामि मुनिवर वयरागी, गाऊँ जिन शासनि सोभागी। रचनाकाल--सोलहसय गुणसठइ वछरि श्रावणइ रे,
नेमिजनमदिन जानि हीयइ हरषइ घणइ रे । जोधनपुरि जयसोम सुगुरु गुण संथुणइ रे ।
वाचक श्री परमोद प्रसाद थकी भणइ रे । ९६ तीर्थङ्कर स्तवन २६ कड़ी की छोटी रचना है। इसका आदि--
नमवि गुणरयण गणे भरिय जिणवर पयं । आपने प्रश्नोत्तर ग्रंथ सं० १६५० के आसपास लाहौर में लिखा। जैन ऐतिहासिक गुर्जर काव्य संग्रह में जयसोम उपाध्याय कृत तीन रचनायें संकलित-प्रकाशित हैं। गुरुगीत ४ कड़ी, जयप्राप्ति गीति ९ कडी और विधि स्थानक चौपाई १७ कड़ी। इस प्रकार हम देखते हैं कि जयसोम उपाध्याय संस्कृत, प्राकृत और मरुगुर्जर के प्रतिष्ठित विद्वान् और ग्रन्थकार थे। वे आचारनिष्ठ साधु और प्रभावक
१. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ९७३ २. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० २३४ (द्वितीय संस्करण) ३. ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह २३वाँ गीत इत्यादि ।
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