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________________ १७२ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास जयसार-आप तपागच्छीय आनंदविमल>धर्म सिंह > जयविमल के शिष्य थे। आपने सं० १६१९ में 'रूपसेन रास' लिखा। इसका रचनाकाल कवि ने इस प्रकार बताया है 'नन्द इंदि रस इन्दु' ।' अन्य विवरण नहीं है । _ (उपाध्याय) जयसोम -आप खरतरगच्छीय प्रमोदमाणिक्यगणि के शिष्य थे। आप १७वीं शताब्दी के प्रसिद्ध विद्वान् और ग्रन्थकार थे। आपने कर्मचन्द वंशोत्कीर्तन नामक ऐतिहासिक काव्य संस्कृत में "लिखा जिस पर आपके शिष्य गुणविनय ने संस्कृत में टीका लिखी। आपने मरुगुर्जर में गद्य-पद्य दोनों ही पर्याप्त लिखा है। आपकी निम्न'लिखित रचनायें उपलब्ध हैं : बारहवत ग्रहणरास सं० १६४७; बारह भावना संधि; बीकानेर सं० १६४६, वयरस्वामी चउपइ सं० १६५९ जोधपुर; चौबीस जिन गणधर संख्या स्तवन सं० १६५६; संभव स्तवन सं० १६५७; साधुवंदना, गौड़ी स्तवन । इन पद्यबद्ध कृतियों के अलावा आपने गद्य में अष्टोत्तरी स्नात्र और दो अन्य प्रश्नोत्तर पद्य ग्रन्थ लिखे हैं। इनकी कुछ रचनाओं के नमूने दिए जा रहे हैं-- वारभावनासंधि का आदि आदीसर जिणवर तणां, पदपंकज पणमेवि, पभणिसु बारहभावना सानधि करि श्रुति देवि । दानदया जपतप क्रिया भाव पखइ अप्रमाण, लूण विना जिम रसवती, ओ श्री जिनवर वाणि । रचनाकाल-- रस वारिधि रस सहस बरसइ बीकानयरि नयरि मन हरसइ । श्री जिनचंद सूरि गुरु राजइ, अह विचार भण्यउ हितकाजइ । अन्त-प्रमोदमाणिक गणि सुहगुरु सीस, गणि जयसोम कहइ सुजगीस, आदीसर सुरतरु सुपसाइ, अह भणतां सवि सुष थाअइ ।' बारव्रत इच्छा परिमाण रास सं० १६४७ वैशाख शुक्ल ३ १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ७०१ (प्रथम संस्करण) और भाग २ पृ० ११२ (द्वितीय संस्करण) २. अगरचन्द नाहटा-परम्परा पृ० ७७ ३. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ४९४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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