SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 189
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७० मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास टीका काव्यप्रकाशस्य सा लिखेत प्रमोदतः गुणसौभाग्य सूरिणां गुरुणां प्राप्य शासनम् । इस कवि के ऊपर एक विस्तृत लेख श्री मोहनलाल दलीलचंद देसाई ने आत्मानन्दप्रकाश, वीर सं० २४५० के १०वें अंक में प्रकाशित कराया है, जिससे इनके सम्बन्ध में विस्तृत विवरण प्राप्त हो सकता है। जयसागर-आप भट्टारक रत्नकीर्ति के प्रमुख शिष्य थे। ये भी अपने गुरु के समान साहित्याराधन में लगे रहे। संभवतः इनका स्वर्गवास रत्नकीर्ति के रहते हो गया था, इसलिए इनका समय सं० १५८० से सं० १६५५ तक माना जा सकता है। इनका साहित्यसृजन कार्य १७वीं शताब्दी में ही हुआ होगा अतः इन्हें यहाँ स्थान दिया गया है। इनकी रचनाओं के नाम इस प्रकार हैं : नेमिनाथगीत १ और २, जसोधरगीत, चुनड़ीगीत, संकटहरपार्वजिनगीत, भ० रत्नकीर्ति पूजागीत, पंचकल्याणकगीत, संघपति मल्लिदास नी गीत, क्षेत्रपालगीत और शीतलनाथ नी विनती। अपने गुरु के समान ये भी छोटे-छोटे गीत लिखने में विशेष रुचि लेते थे। पंचकल्याणक गीत इनकी सबसे बड़ी रचना है। इसमें शान्तिनाथ के पांच कल्याणकों का ७१ पद्यों और पाँच ढालों में वर्णन किया गया है । भाषा मरुगुर्जर और वर्णन सामान्य कोटि का है, यथा नरनारी सुखकर सेविये रे, सोलमों श्री शान्तिनाथ, अविचल पद जे पामयो रे, मुझ मन राखो तुझ साथ । कवि ने गुरुपरंपरा इस प्रकार बताई है श्री अभेचंद पदे सोहे रे अभयसुनंदि सुनंद, तस पाटे प्रगट हवो रे, सरी रत्नकीरति मुनिचंद ।' जशोधरगीत के १८ पद्यों में यशोधर की प्रचलित कथा का संक्षिप्त सारांश दिया गया है । गुर्वावलीगीत में सरस्वतीगच्छ की बलात्कारगण शाखा के भट्टारक देवेन्द्रकीति की परंपरा में होने वाले भट्टारकों का संक्षिप्त उल्लेख है, यथा १. डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल-राजस्थान के जैन सन्त पृ० १५४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy