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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सं० १५८७ वैशाख कृष्ण ६ रविवार को शत्रुञ्जय पर ऋषभनाथ तथा पुण्डरीक के मूर्ति प्रतिष्ठा समारोह में ये आचार्य विनयमंडल के साथ उपस्थित थे। मुनि जिनविजय ने शत्रुञ्जय तीर्थोद्धार की प्रस्तावना में इसका उल्लेख किया है। स्थूलभद्र प्रेमविलास फाग (२९ कड़ी) या थूलिभद्र कोशा प्रेमविलास फाग के अलावा स्थूलिभद्र
और वेश्याकोशा के प्रेमप्रसंग पर आधारित दूसरी रचना इन्होंने 'स्थूलभद्र मोहन बेलि' नाम से रची है । इसकी कुछ पंक्तियाँ देखिए--
मन का सुखदुख कहन . इकहिन जु आधार, हृदय तलाब रु दुख भरयु तूं कुछइ बिनुधार। इकतिइं सब जग वेदना, इकतिइं विछुरन पीर, तोह समान न होत सखि, गोपद सागर नीर ।'
स्थूलिभद्र प्रेमविलास फाग (४५ कड़ी) प्राचीन फागु संग्रह में २६वें क्रम पर प्रकाशित प्रसिद्ध रचना है। इसमें पहले दोहे को छोड़ कर ४१ कड़ी तक कहीं थूलिभद्र और कोशा का नाम न आने से यह किसी भी सामान्य नायक-नायिका के प्रेमविलास का भ्रम उत्पन्न करती है । ४२वीं कड़ी में कोशा का नाम आता है, यथा -
कोश्या वेध वलधड़ी एम ओलंभादेइ, एहवइ गुरु आदेशडउ थूलिभद्रमुनि आवइ।
इसी समय गुरु के आदेश से मुनि स्थूलिभद्र कोशा के पास पहुँचते हैं। वह अत्यन्त हर्षित हो उठी और इसी के साथ फागु समाप्त हो गया। अन्तिम पंक्तियाँ--
स्थूलभद्र कोश्या केरडु गायो प्रेमविलास, फाग खेले सवि गोरडीऊ, जेम आवें मधुमास दिनदिन सज्जन मेलावडो ओ गणतां सुखहोइ जयवंतसूरि वखाणी रे ओ गणतां सुखहोई ।
कुछ काव्यात्मक मार्मिक स्थल उपस्थित करके यह निवेदन करता हूँ कि आपकी इन रचनाओं में काव्यगुण भरपूर है और ये कोरे उपदेशक नहीं है; देखिये वसंत में विरह वर्णन करता हुआ कवि लिखता है -- १. डा० हरीश-जैन गुर्जर कवियों भी हिन्दी सेवा पृ० १०० २. प्राचीन फागु संग्रह पृ० १२७
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