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जयवंतसूरि
१६७.
संवत सोल चोदोत्तरइ, आसो सुदि गुरुबीज, कवि कीधी शृङ्गारमंजरी, जयवंत पंडित हेज ।
ऋषिदत्ता रास सं० १६४३, नेमिराजुल बारमास, स्थूलभद्र प्रेमविलास फाग २८ कड़ी, स्थूलभद्र मोहनबेलि, सीमंधरना चन्द्राउला, लोचनकाजल संवाद आदि आपकी अन्य प्राप्त रचनायें हैं। ऋषिदत्ता रास को निपुणादलाल ने सम्पादित-प्रकाशित किया है। यह सं० १६४३ मागसर शुदी १४ रवि को रची गई, यथासंवत सोल सोहामणो हो, सुहाकरंउहो त्रित्तालउ उदार
मागसिर सुदि चउदसि दिनइ हो दीपंतु रविवार । ऋषिदत्ता के सम्बन्ध में कवि कहता है
केवल लही मुकतें गई कीध कलंकह छेद, ते ऋषिदत्ता सुचरितं सुणयो सहुसविवेक।
नेमराजुल बारमास बेल प्रबंध (७७ कड़ी)--यह 'प्राचीन मध्यकालीन बारमासा संग्रह भाग १ में प्रकाशित है। इसकी कथा जैन साहित्य में अत्यन्त लोकप्रिय है। इसकी अन्तिम पंक्तियाँ इस प्रकार है
बारमास गुण जिणतणा हो गाता म करो प्रमाद;
ऋद्धि अनंती आगमई हो, सुणता हुइ आल्हाद ।' 'सीमंधर स्तवन' आदि
स्वति श्री पुडरगिणी मोरो सुगुण सीमंध : स्वामि, मुहबोलता अमृत झरे, मनोहर मोहन नाम । गुणकमल तोरे वेधियो मनभमर मुझ रस पूरि, तुझ भेटवा अलजो घणो, किम करुं थानिक दूरि रे ।
इन्होंने २७ कड़ी की एक रचना 'सीमंधर चंद्राउला' नाम से इसी विषय पर लिखी है। उसका आदि इस प्रकार है--
विजयवंत पुष्कलावती रे, विजयापुव्व विदेहो, पुर पंडरीक पुडरगिणी रे सुणतां हुई सनेहो।'
१. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० १९८ (प्रथम संस्करण) २. वही, भाग २ पृ० ६९-८० (द्वितीय संस्करण)
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